भारत-कनाडा संबंध :- एक विश्लेषण

चर्चा में क्यों?

                  भारत और कनाडा के बीच संबंध हाल के वर्षों में कई कारणों से चर्चा का विषय बने हुए हैं। सबसे प्रमुख कारण 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या है, जिसके बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर इस हत्या में संलिप्तता का आरोप लगाया। इसने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में गहरी दरार पैदा की। इसके अतिरिक्त, कनाडा की एक संसदीय समिति की हालिया रिपोर्ट ने भारत को कनाडा के लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण खतरे के रूप में चिह्नित किया है, जिसने इस विवाद को और बढ़ा दिया है।

यह रिपोर्ट न केवल खालिस्तानी मुद्दे को बल्कि भारत द्वारा कथित विदेशी हस्तक्षेप को भी रेखांकित करती है।इसके अलावा, भारत और कनाडा के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर भी इस तनाव का प्रभाव पड़ रहा है, जो दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। कनाडा में भारतीय प्रवासियों की बड़ी संख्या और उनके द्वारा वहां की राजनीति और समाज में निभाई जा रही भूमिका भी इस तनाव को जटिल बनाती है।

खालिस्तान आंदोलन, जो भारत में एक अलग सिख राज्य की मांग करता है, कनाडा में सक्रिय सिख समुदाय के कुछ हिस्सों के बीच समर्थन पाता है, जिसे भारत अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा मानता है।

  • उदाहरण:
    • जी-7 शिखर सम्मेलन (जून 2025):-
      • हाल ही में जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के बीच मुलाकात हुई, जिसे दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई।
    • कनाडा की खुफिया एजेंसी (CSIS) की रिपोर्ट:-
      • कनाडा की सुरक्षा खुफिया सेवा (CSIS) ने अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा की धरती का उपयोग भारत में हिंसा को बढ़ावा देने, धन जुटाने और योजनाएं बनाने के लिए कर रहे हैं। यह पहली बार है जब कनाडा ने आधिकारिक तौर पर खालिस्तानी गतिविधियों को “उग्रवाद” के रूप में वर्गीकृत किया है, जो भारत की लंबे समय से चली आ रही चिंताओं की पुष्टि करता है।

G-7 (Group of Seven)  

 परिचय
G-7 या Group of Seven विश्व की सात प्रमुख विकसित औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। इसमें शामिल देश हैं:

1.संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
2. यूनाइटेड किंगडम (UK)
3. कनाडा
4. फ्रांस
5. जर्मनी
6. इटली
7. जापान

इसके अलावा यूरोपीय संघ (EU) भी बैठकों में भाग लेता है, लेकिन वह पूर्ण सदस्य नहीं है।  

स्थापना और इतिहास:-  
G-7 की शुरुआत 1975 में फ्रांस में हुई थी।प्रारंभ में यह एक अनौपचारिक मंच था जिसमें छह देश (G-6) शामिल थे।कनाडा के शामिल होने के बाद यह G-7 बना।रूस को 1997 में शामिल कर इसे G-8 बनाया गया, लेकिन 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद रूस को निलंबित कर दिया गया और समूह फिर से G-7 बन गया।  

G-7 के उद्देश्य:-   वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत विकास को बढ़ावा देनाजलवायु परिवर्तन, ऊर्जा नीति, और सतत विकास पर विचार-विमर्शवैश्विक सुरक्षा, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा आदि पर सहयोगलोकतंत्र, मानवाधिकार और कानून के शासन को बढ़ावा देनावैश्विक आपदाओं और स्वास्थ्य संकटों (जैसे कोविड-19) के समय समन्वय करना  

कार्यप्रणाली और विशेषताएं:-   G-7 की कोई स्थायी सचिवालय या कानूनी संरचना नहीं है।सदस्य देश हर वर्ष बारी-बारी से अध्यक्षता करते हैं और वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन करते हैं।यह निर्णयात्मक संस्था नहीं है; इसके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते, बल्कि नीति-निर्माण और सहयोग के लिए मार्गदर्शक होते हैं।विश्व बैंक, IMF, WTO, WHO जैसे संगठनों के प्रमुखों को भी आमंत्रित किया जाता है।  

G-7 शिखर सम्मेलन 2024-2025 (वर्तमान संदर्भ):-   2024 G-7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी इटली ने की।विषयों में शामिल थे: रूस-यूक्रेन युद्धगाजा संघर्षवैश्विक जलवायु लक्ष्यआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल शासनभारत और अफ्रीका के साथ साझेदारी को मज़बूत करना    

भारत और G-7:-  
भारत G-7 का सदस्य नहीं है, लेकिन कई बार विशेष आमंत्रित देश के रूप में भाग ले चुका है (विशेषकर 2019, 2021, 2022, 2023, 2024)।
भारत G-7 के साथ निम्न क्षेत्रों में सहयोग करता है: जलवायु परिवर्तन और ग्रीन एनर्जीवैश्विक स्वास्थ्य नीतिडिजिटल तकनीक और साइबर सुरक्षामुक्त और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्रG-7 भारत को “वैश्विक दक्षिण” का नेतृत्वकर्ता मानता है।             
इस प्रकार G-7 एक ऐसा मंच है जो वैश्विक नेतृत्व और नीति संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर जलवायु, अर्थव्यवस्था, तकनीक और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर। हालाँकि इसकी सदस्यता सीमित है, फिर भी भारत जैसे देशों की बढ़ती भूमिका और संवाद से यह मंच अधिक समावेशी और प्रभावशाली बनने की दिशा में अग्रसर है।    

संसदीय समिति की रिपोर्ट की मुख्य बातें:-

कनाडा की संसदीय समिति की 2025 की रिपोर्ट ने भारत-कनाडा संबंधों में तनाव को और बढ़ा दिया है। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

  • खालिस्तानी हत्या और कूटनीतिक विवाद:-
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। कनाडा ने इस हत्या में भारतीय सरकारी एजेंटों की संलिप्तता का आरोप लगाया, जिसे भारत ने सिरे से खारिज किया। इस मुद्दे ने दोनों देशों के बीच विश्वास को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
      •  उदाहरण: कनाडा के विदेश उप-मंत्री डेविड मॉरिसन ने 29 अक्टूबर 2024 को एक संसदीय पैनल में दावा किया कि निज्जर की हत्या के पीछे भारत के गृह मंत्री अमित शाह का आदेश था। भारत ने इसे “निराधार” और “हास्यास्पद” बताकर खारिज किया।
  • भारत द्वारा कथित हस्तक्षेप:-
    • रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत द्वारा कनाडा में हस्तक्षेप धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जिसमें खालिस्तानी नेताओं को निशाना बनाने के लिए कथित तौर पर बिश्नोई गैंग जैसे आपराधिक समूहों का उपयोग शामिल है। भारत ने इन आरोपों को बेतुका और सबूतों के अभाव में प्रेरित बताया है।
      • उदाहरण: CSIS की 2025 की रिपोर्ट में भारत पर “ट्रांसनेशनल दमन” का आरोप लगाया गया, जिसमें कहा गया कि भारत कनाडा में खालिस्तानी नेताओं को दबाने के लिए सक्रिय है। हालांकि, कनाडा ने अभी तक इस दावे के समर्थन में ठोस सबूत पेश नहीं किए हैं।
  • खतरे का आकलन:-
    • रिपोर्ट में कनाडा की सरकार की कार्यप्रणाली में विदेशी हस्तक्षेप के प्रति बढ़ती चिंता को रेखांकित किया गया है, जिसमें हाल के वर्षों में ध्यान विशेष रूप से चीन और भारत की ओर स्थानांतरित हुआ है। यह आकलन कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए किया गया है।
      • उदाहरण: कनाडा की जासूसी एजेंसी कम्युनिकेशन सिक्योरिटी एस्टैब्लिशमेंट (CSE) ने 31 अक्टूबर 2024 को अपनी रिपोर्ट में भारत को 2025-26 के लिए खतरा पैदा करने वाले देशों की सूची में शामिल किया। यह पहली बार था जब भारत को इस सूची में जगह दी गई।
  • चीन को सबसे बड़ा खतरा:-
    • रिपोर्ट में चीन को कनाडा के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा विदेशी खतरा बताया गया है, लेकिन भारत को दूसरा स्थान देना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच तनाव को और गहराता है।
      • उदाहरण: CSIS की रिपोर्ट में चीन को कनाडा के लिए सबसे बड़ा “सीक्रेट खतरा” बताया गया, जिसमें रूस, ईरान और पाकिस्तान का भी उल्लेख है। भारत का इस सूची में शामिल होना कनाडा की बदलती भूराजनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

इस प्रकार यह रिपोर्ट भारत और कनाडा के बीच तनाव को कम करने के बजाय और बढ़ाने वाली साबित हुई है। भारत ने इन आरोपों को बार-बार खारिज किया है और कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने का आरोप लगाया है। कनाडा की यह स्वीकारोक्ति कि खालिस्तानी समूह भारत के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में शामिल हैं, भारत के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन साथ ही भारत पर “विदेशी हस्तक्षेप” का आरोप लगाना दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को दर्शाता है।

  फाइव आईज (Five Eyes) गठबंधन  

परिचय
फाइव आईज (Five Eyes) एक बहुपक्षीय खुफिया गठबंधन है, जिसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और बाद में अमेरिका व ब्रिटेन के बीच खुफिया सहयोग को औपचारिक रूप देने के लिए हुई थी। यह गठबंधन मूलतः संकेत खुफिया (Signals Intelligence – SIGINT) के आदान-प्रदान के लिए गठित हुआ था।

इसमें पाँच अंग्रेज़ी भाषी लोकतांत्रिक देश शामिल हैं:
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) यूनाइटेड किंगडम (UK) कनाडा (Canada) ऑस्ट्रेलिया (Australia) न्यूज़ीलैंड (New Zealand)                  

यह गठबंधन 1946 में “UKUSA Agreement” के माध्यम से औपचारिक रूप से अस्तित्व में आया और तब से यह वैश्विक खुफिया सहयोग का सबसे शक्तिशाली और गोपनीय नेटवर्क बना हुआ है।  

 उद्देश्य:-  
सांकेतिक खुफिया संग्रह और साझा करना: सदस्य देश आपस में अपने संचार निगरानी डेटा, साइबर खुफिया और सुरक्षा सूचनाएं साझा करते हैं।
सामूहिक सुरक्षा: आतंकवाद, साइबर हमलों, अपराध, और अन्य वैश्विक सुरक्षा खतरों का मुकाबला करना।
वैश्विक निगरानी और विश्लेषण: विश्व स्तर पर राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और तकनीकी गतिविधियों की गुप्त निगरानी।
राजनीतिक एवं कूटनीतिक समर्थन: सदस्य देशों को रणनीतिक निर्णय लेने में खुफिया सहायता प्रदान करना।  

महत्व:-  
वैश्विक सुरक्षा नेटवर्क: फाइव आईज दुनिया के सबसे प्रभावशाली खुफिया नेटवर्क में से एक है, जो सदस्य देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है।
तकनीकी व खुफिया क्षमताओं का समन्वय: उच्च तकनीक आधारित निगरानी और डेटा विश्लेषण में सहयोग।
वैश्विक आतंकवाद एवं साइबर अपराध पर नियंत्रण: वैश्विक आतंकवाद से लड़ने और साइबर खतरों का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका।
राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव: वैश्विक स्तर पर राजनीतिक निर्णयों और आर्थिक नीतियों पर प्रभाव डालने में सहायक।
गोपनीयता और मानवाधिकार बहस: हालांकि इसका संचालन अत्यंत गोपनीय है, इसके चलते निजता और नागरिक स्वतंत्रताओं को लेकर वैश्विक स्तर पर चिंताएँ और विवाद भी उठते हैं।  

भारत के लिए इसके निहितार्थ:-  
खुफिया सहयोग की संभावनाएँ: भारत के लिए फाइव आईज से खुफिया सहयोग की संभावनाएँ महत्वपूर्ण हो सकती हैं, खासकर आतंकवाद, सीमा सुरक्षा, और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में।  
गोपनीयता एवं संप्रभुता के प्रश्न: फाइव आईज की निगरानी गतिविधियों में भारत के क्षेत्रीय और कूटनीतिक हित प्रभावित हो सकते हैं, विशेषकर जब भारत के खिलाफ सूचना संग्रह की बात हो।  
वैश्विक भू-राजनीति में भूमिका:  फाइव आईज गठबंधन में भारत का शामिल न होना उसे कुछ मामलों में वैश्विक खुफिया सर्कल से दूर रखता है, लेकिन साथ ही यह भारत को अपनी स्वतंत्र नीति बनाने में सक्षम बनाता है।  
चीन और पाकिस्तान पर नज़र: फाइव आईज गठबंधन चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के प्रतिस्पर्धी देशों पर कड़ी नजर रखता है, जिससे भारत के सुरक्षा हितों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।  
डिजिटल सुरक्षा चुनौतियाँ: फाइव आईज के साइबर निगरानी नेटवर्क के विस्तार से भारत को अपनी डिजिटल संप्रभुता और डेटा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा।

इस प्रकार फाइव आईज गठबंधन विश्व का एक प्रभावशाली खुफिया साझेदारी नेटवर्क है जो वैश्विक सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से सदस्य देशों को आतंकवाद, साइबर खतरे और वैश्विक खुफिया जानकारी में श्रेष्ठता मिलती है। हालांकि भारत इसके सदस्य नहीं है, फिर भी इसके निहितार्थ भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के लिए चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करते हैं। भारत को अपनी सुरक्षा और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए इस गठबंधन के सदस्य देशों के साथ व्यापक संवाद और सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही, वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने हेतु भारत को भी ऐसे वैश्विक खुफिया साझेदारियों में सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास करने चाहिए।    

भारत-कनाडा संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ:-

भारत और कनाडा के बीच संबंध कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • निज्जर हत्याकांड विवाद:-
    • 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या ने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय सरकारी एजेंटों पर हत्या का आरोप लगाया, जिसे भारत ने खारिज किया। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित किया और यात्रा सलाह जारी की।
      • उदाहरण: 2024 में, कनाडा ने भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा सहित छह राजनयिकों को “पर्सन ऑफ इंटरेस्ट” घोषित किया, जिसके जवाब में भारत ने छह कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित किया।
  • खालिस्तान मुद्दा:-
    • भारत ने कनाडा पर खालिस्तानी समर्थक समूहों को पनाह देने और उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। CSIS की 2025 की रिपोर्ट ने पुष्टि की कि खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा को भारत में हिंसा के लिए आधार के रूप में उपयोग कर रहे हैं।
      • उदाहरण: कनाडा में खालिस्तानी समूहों द्वारा नियमित रूप से आयोजित “रेफरेंडम” भारत की संप्रभुता के लिए चिंता का विषय हैं।
  • व्यापार गतिरोध:-
    • 2011 से CEPA और FIPA पर वार्ताएँ चल रही हैं, लेकिन कूटनीतिक तनाव के कारण ये रुकी हुई हैं।
      • उदाहरण: निज्जर विवाद के बाद, व्यापार वार्ताएँ अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गईं।
  • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ:-
    • कनाडा ने कश्मीर, CAA, किसान आंदोलन और असहमति पर कार्रवाई को लेकर भारत की आलोचना की है। भारत इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है।
      • उदाहरण: 2021 में, कनाडा की संसद ने भारत के किसान आंदोलन पर चिंता व्यक्त की, जिसे भारत ने “अस्वीकार्य” बताया।
  • सुरक्षा दुविधाएँ:-
    • भारत और कनाडा के बीच अफगानिस्तान, चीन और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर मतभेद हैं। कनाडा की अमेरिका के साथ निकटता भारत के लिए चिंता का विषय है।
      •  उदाहरण: कनाडा की “फाइव आईज” गठबंधन में भूमिका भारत के साथ इसके संबंधों को जटिल बनाती है।
  • प्रवासी गतिशीलता:-
    • कनाडा में भारतीय प्रवासी, विशेष रूप से सिख समुदाय, खालिस्तानी मुद्दे पर सक्रिय हैं, जो दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनता है।
      • उदाहरण: कनाडा के ब्रैंपटन में सिख समुदाय की खालिस्तानी गतिविधियों ने भारत की चिंताएँ बढ़ाई हैं।
  • नेतृत्व अंतराल:-
    • प्रधानमंत्री ट्रूडो और मोदी के बीच व्यक्तिगत तालमेल की कमी ने संबंधों को और जटिल किया है।
      • उदाहरण: 2025 में मार्क कार्नी के नए प्रधानमंत्री बनने के बाद संबंधों में सुधार की उम्मीद है।

आगे की राह:-

भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • लोगों के बीच संबंध:-
    • दोनों देशों के बीच लोगों का संपर्क मजबूत है, विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों के माध्यम से। इसे और बढ़ावा देना चाहिए।
      • उदाहरण: कनाडा में भारतीय सांस्कृतिक उत्सव और भारत में कनाडाई शैक्षिक पहल इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं।
  • शांत कूटनीति:-
    • दोनों देशों को बातचीत और संवाद पर ध्यान देना चाहिए। एक संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group) का गठन इस दिशा में एक कदम हो सकता है।
      •  उदाहरण: 2025 में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने संवाद को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई।
  • खालिस्तान मुद्दे पर सम्मान:-
    • कनाडा को भारत की संप्रभुता और खालिस्तानी चरमपंथ के प्रति उसकी चिंताओं का सम्मान करना चाहिए।
      • उदाहरण: CSIS की 2025 की रिपोर्ट में खालिस्तानी उग्रवाद को स्वीकार करना एक सकारात्मक कदम है।
  • रचनात्मक बातचीत:-
    • भारत को कनाडा की कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान करते हुए रचनात्मक संवाद में शामिल होना चाहिए।
      • उदाहरण: भारत ने निज्जर मामले में कनाडा से ठोस सबूत मांगे हैं, जो रचनात्मक संवाद का आधार बन सकता है।

निष्कर्ष:-

            भारत-कनाडा संबंध एक जटिल लेकिन संभावनाओं से भरा क्षेत्र है। निज्जर हत्याकांड और खालिस्तानी मुद्दे ने हाल के वर्षों में इन संबंधों को तनावपूर्ण बनाया है, लेकिन आर्थिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक सहयोग की मजबूत नींव इसे सुधारने का अवसर प्रदान करती है। कनाडा की 2025 की संसदीय रिपोर्ट ने तनाव को और बढ़ाया है, लेकिन दोनों देशों के बीच हालिया कूटनीतिक प्रयास, जैसे जी-7 शिखर सम्मेलन में मुलाकात, सकारात्मक संकेत हैं। शांत कूटनीति, पारस्परिक सम्मान और रचनात्मक संवाद के माध्यम से, दोनों देश अपने संबंधों को पुनर्जनन दे सकते हैं।

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