चर्चा में क्यों ? :-
अमेरिका की विदेश नीति को लंबे समय से उसकी “दबंग कूटनीति” (coercive diplomacy) के लिए जाना जाता है, जिसमें सैन्य शक्ति, आर्थिक प्रतिबंध, और राजनयिक दबाव का उपयोग करके वैश्विक मंच पर अपने हितों को साधा जाता है। खास तौर पर पश्चिम एशिया में, अमेरिका की नीतियों ने क्षेत्रीय संघर्षों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

- वर्तमान में, इजराइल और ईरान के बीच चल रहे युद्ध (जून 2025 तक की स्थिति के आधार पर) में अमेरिका की प्रत्यक्ष और परोक्ष भागीदारी ने इस क्षेत्र में उसकी दबंग कूटनीति को फिर से उजागर किया है।
- यह युद्ध, जो इजराइल के ऑपरेशन “राइजिंग लॉयन” और ईरान के जवाबी हमलों से शुरू हुआ, अब अमेरिका की सैन्य कार्रवाइयों, विशेष रूप से ईरान के परमाणु ठिकानों (फोर्डो, नतांज, और इस्फहान) पर हमलों के साथ एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है।
दबंग कूटनीति क्या है?:-
दबंग कूटनीति, जिसे अंग्रेजी में “Coercive Diplomacy” कहा जाता है, एक ऐसी रणनीति है जिसमें एक राष्ट्र अन्य देशों को अपने हितों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए मजबूर करता है। इसमें सैन्य बल का प्रदर्शन, आर्थिक प्रतिबंध, राजनयिक अलगाव, और कभी-कभी प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप शामिल होता है।
- अमेरिका ने इस रणनीति का उपयोग शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद कई बार किया है,
- जैसे कि क्यूबा मिसाइल संकट (1962), इराक युद्ध (2003), और ईरान के साथ परमाणु समझौते (JCPOA) से बाहर निकलने के बाद प्रतिबंधों का दौर (2018)।
पश्चिम एशिया में अमेरिका की दबंग कूटनीति:-
- पश्चिम एशिया में अमेरिका की नीतियां हमेशा से इजराइल की सुरक्षा, तेल संसाधनों तक पहुंच, और क्षेत्रीय वर्चस्व को सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही हैं। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, जब ईरान ने अमेरिका के समर्थन वाले शाह को उखाड़ फेंका, ईरान और अमेरिका के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए।
- इसके विपरीत, इजराइल अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी बन गया। अमेरिका ने इजराइल को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की, जिसमें 1950 से 2022 तक 53 बिलियन डॉलर के हथियारों की आपूर्ति शामिल है।
- ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका ने हमेशा सख्त रुख अपनाया। 2015 के JCPOA समझौते के बावजूद, जिसमें ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने का वादा किया था, डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया और ईरान पर “अधिकतम दबाव” (maximum pressure) की नीति लागू की। इस नीति में कड़े आर्थिक प्रतिबंध और क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना शामिल था।
इजराइल-ईरान युद्ध: वर्तमान संदर्भ:-
- युद्ध की शुरुआत:-
- जून 2025 तक, इजराइल और ईरान के बीच युद्ध 13 जून 2025 को शुरू हुआ, जब इजराइल ने ऑपरेशन “राइजिंग लॉयन” के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले किए। इन हमलों का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम और लंबी दूरी की मिसाइल क्षमता को नष्ट करना था।
- ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इजराइल पर 15 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिससे दोनों देशों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ।इस युद्ध की जड़ें लंबे समय से चली आ रही हैं। ईरान का समर्थन प्राप्त हमास, हिजबुल्लाह, और हूती जैसे प्रॉक्सी समूह इजराइल के खिलाफ सक्रिय रहे हैं।
- 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले, जिसमें 1,200 इजराइली मारे गए, ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ाया। इसके बाद इजराइल ने गाजा, लेबनान, और सीरिया में ईरानी समर्थित ठिकानों पर हमले तेज कर दिए।
- अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी:-
- 22 जून 2025 को अमेरिका ने युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से प्रवेश किया, जब उसने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज, और इस्फहान—पर बमबारी की।
- इन हमलों में GBU-57 “बंकर बस्टर” बम का उपयोग किया गया, जो गहरे बंकरों को नष्ट करने में सक्षम है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को पूरी तरह नष्ट कर दिया।अमेरिका की इस कार्रवाई के पीछे कई उद्देश्य थे:
- इजराइल की सुरक्षा सुनिश्चित करना:-
- इजराइल लंबे समय से ईरान के परमाणु हथियारों को अपने लिए खतरा मानता रहा है। फोर्डो जैसे अंडरग्राउंड प्लांट को नष्ट करने की क्षमता केवल अमेरिका के पास थी।
- क्षेत्रीय वर्चस्व:-
- अमेरिका ने इस हमले के जरिए पश्चिम एशिया में अपनी सैन्य और राजनयिक ताकत का प्रदर्शन किया।
- ईरान पर दबाव:-
- ट्रम्प प्रशासन ने ईरान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की मांग की और कूटनीति के रास्ते बंद होने का हवाला दिया।2.3
- इजराइल की सुरक्षा सुनिश्चित करना:-
- ईरान की प्रतिक्रिया:-
- ईरान ने अमेरिकी हमलों को “अवैध” करार दिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इसकी निंदा की।
- ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा कि “ईरान कभी सरेंडर नहीं करेगा” और अमेरिका को “गंभीर परिणाम” भुगतने की चेतावनी दी।
- ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी, जो वैश्विक तेल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण मार्ग है।
- इसके अलावा, ईरान ने रूस और चीन के साथ कूटनीतिक गठजोड़ को मजबूत किया, और पाकिस्तान ने ईरान के समर्थन में UNSC में आपात बैठक बुलाई।
अमेरिका की दबंग कूटनीति के आयाम:-
- सैन्य शक्ति का प्रदर्शन:-
- अमेरिका ने इस युद्ध में अपनी सैन्य ताकत का खुलकर प्रदर्शन किया। B-2 स्पिरिट बमवर्षक विमानों और GBU-57 बमों का उपयोग न केवल ईरान के लिए, बल्कि रूस और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों के लिए भी एक संदेश था।
- इसके अलावा, अमेरिका ने क्षेत्र में अतिरिक्त युद्धपोत, फाइटर जेट्स, और ईंधन भरने वाले टैंकर तैनात किए। ट्रम्प ने दावा किया कि “ईरान के पूरे हवाई क्षेत्र पर अमेरिका का नियंत्रण है,” जो उनकी आक्रामक रणनीति को दर्शाता है।
- आर्थिक और राजनयिक दबाव:-
- अमेरिका ने ईरान पर पहले से ही कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं, जो इस युद्ध के दौरान और तेज हो गए।
- इसके अलावा, अमेरिका ने अपने सहयोगियों, जैसे ब्रिटेन, को क्षेत्र में सैन्य तैनाती के लिए प्रेरित किया।
- हालांकि, रूस, चीन, और पाकिस्तान जैसे देशों ने अमेरिकी कार्रवाइयों की निंदा की, जिससे वैश्विक मंच पर ध्रुवीकरण बढ़ा।
- प्रॉक्सी युद्ध और क्षेत्रीय गठजोड़:-
- अमेरिका ने इस युद्ध में इजराइल को पूर्ण समर्थन दिया, लेकिन साथ ही पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ ट्रम्प की मुलाकात ने क्षेत्रीय गठजोड़ की जटिलता को उजागर किया।
- विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात पश्चिम एशिया में अमेरिकी प्रभाव को और मजबूत करने की कोशिश थी। दूसरी ओर, ईरान ने रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को गहरा किया, जिससे क्षेत्र में एक नया शक्ति संतुलन उभर रहा है।
. भारत पर प्रभाव:-
- कूटनीतिक चुनौतियां:-
- भारत के लिए यह युद्ध एक जटिल कूटनीतिक चुनौती है, क्योंकि उसके इजराइल, ईरान, और अमेरिका तीनों के साथ मजबूत संबंध हैं। भारत ने इस संघर्ष में तटस्थ रहने की नीति अपनाई है और दोनों पक्षों से शांति और बातचीत की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान से फोन पर बात की और क्षेत्रीय तनाव को कम करने की जरूरत पर जोर दिया।भारत के सामने निम्नलिखित चुनौतियां हैं:
- इजराइल के साथ रक्षा सहयोग:-
- भारत और इजराइल के बीच रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में गहरा सहयोग है। इजराइल भारत को ड्रोन, मिसाइल रक्षा प्रणालियां, और साइबर सुरक्षा उपकरण प्रदान करता है।
- ईरान के साथ रणनीतिक संबंध:–
- ईरान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता और चाबहार पोर्ट परियोजना का साझेदार है, जो भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है।
- अमेरिका के साथ सामरिक साझेदारी:-
- भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, व्यापार, और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बढ़ता सहयोग भारत को अमेरिका के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए बाध्य करता है।
- इजराइल के साथ रक्षा सहयोग:-
- भारत के लिए यह युद्ध एक जटिल कूटनीतिक चुनौती है, क्योंकि उसके इजराइल, ईरान, और अमेरिका तीनों के साथ मजबूत संबंध हैं। भारत ने इस संघर्ष में तटस्थ रहने की नीति अपनाई है और दोनों पक्षों से शांति और बातचीत की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान से फोन पर बात की और क्षेत्रीय तनाव को कम करने की जरूरत पर जोर दिया।भारत के सामने निम्नलिखित चुनौतियां हैं:
- आर्थिक प्रभाव:-
- इस युद्ध ने भारत के व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव डाला है। होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने की धमकी से तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है, जो भारत जैसे तेल आयातक देश के लिए नुकसानदायक है।
- इसके अलावा, लाल सागर मार्ग पहले से ही हूती विद्रोहियों के हमलों के कारण बाधित है, जिससे भारत का यूरोप और अमेरिका के साथ व्यापार प्रभावित हुआ है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने ईरान को 1.24 अरब डॉलर का निर्यात और 441.9 मिलियन डॉलर का आयात किया, जबकि इजराइल के साथ व्यापार का आंकड़ा 2.1 अरब डॉलर (निर्यात) और 1.6 अरब डॉलर (आयात) रहा।
- इस युद्ध के कारण भारतीय निर्यातकों ने ईरान और इजराइल को माल भेजना रोक दिया है, जिससे आर्थिक नुकसान हो रहा है।
- मानवीय और सामाजिक प्रभाव:-
- पश्चिम एशिया में 90 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी काम करते हैं। इस युद्ध के कारण उनकी सुरक्षा खतरे में है, और भारत सरकार ने पहले ही अपने नागरिकों को ईरान और इजराइल की यात्रा से बचने की सलाह दी है।
- इसके अलावा, क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ने से भारत में सामाजिक और धार्मिक तनाव भी पैदा हो सकता है, क्योंकि भारत की आबादी में विभिन्न समुदायों के बीच पश्चिम एशिया के मुद्दों पर अलग-अलग राय हैं।
वैश्विक प्रभाव:-
- तेल और ऊर्जा संकट:-
- होर्मुज जलडमरू वैश्विक तेल आपूर्ति का 20% हिस्सा संभालता है। ईरान की धमकी से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने चेतावनी दी है कि इस युद्ध के कारण 2025 में वैश्विक व्यापार वृद्धि 2.7% से घटकर 0.2% रह सकती है।
- वैश्विक ध्रुवीकरण:-
- यह युद्ध वैश्विक शक्तियों के बीच ध्रुवीकरण को और गहरा कर रहा है। एक ओर अमेरिका, इजराइल, और ब्रिटेन हैं, तो दूसरी ओर ईरान, रूस, चीन, और पाकिस्तान।
- UNSC में अमेरिकी हमलों के खिलाफ रूस और चीन ने युद्धविराम का प्रस्ताव पेश किया, जबकि अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “अस्वीकार्य” बताया। यह ध्रुवीकरण तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं को जन्म दे रहा है।
- क्षेत्रीय अस्थिरता:-
- पश्चिम एशिया में पहले से ही अस्थिरता है, और इस युद्ध ने इसे और बढ़ा दिया है। जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला ने चेतावनी दी कि यह युद्ध पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है।
- इसके अलावा, यमन और इराक में भी बम धमाकों की खबरें हैं, जो इस संघर्ष के विस्तार का संकेत देती हैं।
होर्मुज़ जलडमरू (Strait of Hormuz) |

अमेरिका की दबंग कूटनीति की आलोचना:-
- आंतरिक आलोचना:-
- अमेरिका के भीतर भी ट्रम्प की नीतियों की आलोचना हो रही है। डेमोक्रेट सांसद सारा जैकब्स ने इन हमलों को “असंवैधानिक” करार दिया और चेतावनी दी कि यह अमेरिका को एक और अंतहीन युद्ध में धकेल सकता है। सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने कहा कि ट्रम्प को सैन्य कार्रवाई के लिए संसद की मंजूरी लेनी होगी।
- अंतरराष्ट्रीय आलोचना:-
- संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत ने अमेरिका की कार्रवाइयों को “अवैध” और “युद्ध अपराध” बताया।
- रूस और चीन ने इन हमलों को “खतरनाक” करार दिया। इसके अलावा, संयुक्त अरब अमीरात जैसे खट देशों ने भी इस युद्ध को बातचीत से हल करने की अपील की है।
- दीर्घकालिक परिणाम:-
- अमेरिका की दबंग कूटनीति ने ईरान को और अधिक आक्रामक बना दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह युद्ध ईरान को रूस और चीन के और करीब ले जा सकता है, जिससे वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आएगा।
- इसके अलावा, यह युद्ध क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकता है और तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।
निष्कर्ष:-
अमेरिका की दबंग कूटनीति ने इजराइल-ईरान युद्ध को एक वैश्विक संकट में बदल दिया है। इस युद्ध में अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी, विशेष रूप से ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले, ने उसकी सैन्य और राजनयिक ताकत का प्रदर्शन तो किया, लेकिन साथ ही क्षेत्रीय अस्थिरता और वैश्विक ध्रुवीकरण को भी बढ़ाया। भारत जैसे देशों के लिए यह युद्ध कूटनीतिक, आर्थिक, और मानवीय चुनौतियां पैदा कर रहा है, जबकि वैश्विक समुदाय तेल संकट और तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं से जूझ रहा है।
- इस प्रकार इस युद्ध का भविष्य अनिश्चित है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अमेरिका की दबंग कूटनीति पश्चिम एशिया और विश्व की भू-राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित करेगी। इस स्थिति में, भारत जैसे देशों को अपनी तटस्थता और रणनीतिक संयम बनाए रखते हुए कूटनीति के माध्यम से क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना होगा।