चर्चा में क्यों ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा, जो 15-16 जून 2025 को हुई, भारत की विदेश नीति और वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह यात्रा पिछले दो दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की पहली यात्रा थी, जिसे न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए बल्कि भू-राजनीतिक रणनीति के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह यात्रा तुर्की-पाकिस्तान की बढ़ती धुरी के जवाब में भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने, पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की उपस्थिति को गहरा करने, और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसे महत्वाकांक्षी ढांचे में साइप्रस की भूमिका को रेखांकित करने का प्रयास है। इसके अतिरिक्त, साइप्रस द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III से सम्मानित किया जाना इस यात्रा की प्रतीकात्मक और कूटनीतिक महत्ता को और बढ़ाता है।

परिचय:-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की विदेश नीति में एक सुनियोजित और रणनीतिक कदम है, जो वैश्विक और क्षेत्रीय भू-राजनीति के बदलते परिदृश्य में भारत की सक्रिय भूमिका को दर्शाता है। यह यात्रा तीन प्रमुख संदर्भों में देखी जा सकती है:-
● भू-राजनीतिक संदेश
○ तुर्की-पाकिस्तान धुरी का जवाब:
■ तुर्की ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को गहरा किया है, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का समर्थन करके। इसके अलावा, भारत के ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) के दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को रक्षा सहायता प्रदान की, जिसमें Bayraktar TB2 ड्रोन की आपूर्ति शामिल थी।
■ साइप्रस, जो तुर्की के साथ ऐतिहासिक और क्षेत्रीय विवादों (1974 के तुर्की आक्रमण) में उलझा हुआ है, भारत के लिए एक रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरता है। यह यात्रा तुर्की और पाकिस्तान को भारत की सक्रिय कूटनीति का स्पष्ट संदेश देती है।
○ पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की उपस्थिति:
■ साइप्रस की भौगोलिक स्थिति—तुर्की और सीरिया के निकट, और यूरोप, एशिया, और अफ्रीका के चौराहे पर—इसे भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु बनाती है। भारत की थिंक वेस्ट नीति के तहत, यह यात्रा पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की कूटनीतिक और आर्थिक उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास है।
● IMEC ढांचे में साइप्रस की भूमिका:-
○ भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), जो G20 शिखर सम्मेलन 2023 में प्रस्तावित हुआ, भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजना है।
○ साइप्रस, अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण, इस गलियारे में एक महत्वपूर्ण समुद्री-स्थलीय जंक्शन के रूप में उभर सकता है। लिमासोल बंदरगाह जैसे बुनियादी ढांचे भारत के लिए समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण हैं।
● यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत करना:-
○ साइप्रस 2026 की पहली छमाही में यूरोपीय संघ (EU) परिषद की अध्यक्षता करेगा। भारत, जो EU के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है, साइप्रस को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है।
○ यह यात्रा भारत-EU संबंधों को गहरा करने और व्यापार, सुरक्षा, और डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों में प्रगति को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है।
● प्रतीकात्मक महत्व:-
○ साइप्रस द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III से सम्मानित करना दोनों देशों के बीच गहरे विश्वास और मित्रता का प्रतीक है। यह सम्मान साइप्रस के पहले राष्ट्रपति आर्कबिशप मकारियोस III के नाम पर है, जिन्होंने 1960 में साइप्रस की स्वतंत्रता के बाद देश को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
■ उदाहरण:तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोगन ने 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया, जिससे भारत-तुर्की संबंधों में और खटास आई।
■ साइप्रस ने अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की और इसे EU स्तर पर उठाने का वादा किया, जिससे भारत के प्रति उसका समर्थन स्पष्ट हुआ।
● आर्थिक अवसर:-
○ साइप्रस का उन्नत वित्तीय सेवा क्षेत्र, अनुकूल कर व्यवस्था, और स्थापित शिपिंग उद्योग इसे भारतीय कंपनियों के लिए यूरोपीय बाजारों तक पहुंच का एक आदर्श केंद्र बनाते हैं।
○ उदाहरण के लिए:-
■ यूरोबैंक का मुंबई कार्यालय:
● साइप्रस के सबसे बड़े बैंकों में से एक, यूरोबैंक ने हाल ही में मुंबई में एक प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की घोषणा की है। यह भारतीय व्यवसायों को यूरोपीय संघ में प्रवेश करने और यूरोप, मध्य पूर्व, अफ्रीका, और दक्षिण एशिया के बीच पूंजी और व्यवसायों के अंतर्संबंध को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
■ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
● साइप्रस भारत में FDI का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जिसे दोनों देशों के बीच दोहरे कराधान परिहार समझौते (DTAA) द्वारा समर्थन प्राप्त है।
■ प्राकृतिक गैस संसाधन:
● साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस की खोज में एक प्रमुख खिलाड़ी है। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए विविध स्रोतों की तलाश में है, साइप्रस के साथ ऊर्जा साझेदारी विकसित कर सकता है।
साइप्रस

परिचय:-
● भौगोलिक स्थिति:साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीपीय देश है।
● यह तुर्की के दक्षिण, सीरिया और लेबनान के पश्चिम में स्थित है।
● भौगोलिक रूप से यह एशिया का हिस्सा है, लेकिन राजनीतिक रूप से यूरोप से जुड़ा है।
● यह यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य देश है (2004 से)।
● राजधानी: निकोसिया (दुनिया की एकमात्र विभाजित राजधानी – उत्तर तुर्की-प्रभावित, दक्षिण ग्रीक-प्रभावित)
● आधिकारिक भाषाएँ: ग्रीक और तुर्की
● मुद्रा: यूरो (Euro)
● शासन प्रणाली: गणराज्यात्मक लोकतंत्र
साइप्रस का ऐतिहासिक और राजनीतिक विवाद (ग्रीक-तुर्की प्रतिद्वंद्विता):-
● 1878 ब्रिटेन ने ओटोमन साम्राज्य से साइप्रस पर प्रशासनिक अधिकार लिए।
● 1914 WWI में ब्रिटेन ने साइप्रस को आधिकारिक उपनिवेश घोषित किया।
● 1955 ग्रीक साइप्रस नागरिकों ने ग्रीस के साथ विलय के लिए आंदोलन शुरू किया (EOKA)।
● 1960 साइप्रस स्वतंत्र हुआ; ग्रीक और तुर्की समुदायों के लिए सत्ता-साझाकरण व्यवस्था बनी।
● 1963 राष्ट्रपति मकारियोस के संशोधनों के कारण तुर्की साइप्रस नाराज़; सरकार में दरार पड़ी।
● 1974 ग्रीक समर्थक तख्तापलट के जवाब में तुर्की ने सैन्य हस्तक्षेप कर उत्तर साइप्रस पर कब्जा कर लिया।
● 1983 तुर्की-नियंत्रित उत्तर ने खुद को “Northern Cyprus” के रूप में स्वतंत्र घोषित किया, जिसे केवल तुर्की मान्यता देता है।
● 2004 साइप्रस EU में शामिल हुआ, लेकिन विभाजन बरकरार रहा।
● 2008 साइप्रस ने यूरो मुद्रा को अपनाया। निकोसिया की विभाजित सड़कें फिर से खुलीं।
साइप्रस का वैश्विक और रणनीतिक महत्व:-
● भू-राजनीतिक सेतु:
○ यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच स्थित होने के कारण यह क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण है।
● ऊर्जा स्रोत:
○ पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस भंडार को लेकर तुर्की, इज़राइल, ग्रीस और साइप्रस के बीच प्रतिस्पर्धा है।
● संयुक्त राष्ट्र की भूमिका:
○ UN Peacekeeping Force लंबे समय से यहां “ग्रीन लाइन” (Buffer Zone) का संचालन कर रही है।
भारत-साइप्रस संबंध: ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य:-
भारत और साइप्रस के बीच संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और रणनीतिक आधार पर विकसित हुए हैं। यह यात्रा इन संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयास है।
● ऐतिहासिक संबंध:-
○ भारत और साइप्रस दोनों प्राचीन सभ्यताएं हैं, जिनके बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सदियों से चले आ रहे हैं। साइप्रस के तांबे के भंडार और भारत के मसालों का व्यापार प्राचीन काल में महत्वपूर्ण था।
○ 1960 में साइप्रस की स्वतंत्रता के बाद, भारत ने इसके संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया, विशेष रूप से 1974 के तुर्की आक्रमण के बाद।
● कूटनीतिक समर्थन:-
○ साइप्रस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का लगातार समर्थन किया है।साइप्रस ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते का समर्थन किया, जिससे भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली।
○ भारत ने साइप्रस की एकता और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के आधार पर साइप्रस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन किया है।
● आतंकवाद विरोधी सहयोग:-
○ साइप्रस ने भारत के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया है।
○ अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करते हुए साइप्रस ने इसे EU स्तर पर उठाने का वादा किया।दोनों देशों ने आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, और हथियारों की अवैध तस्करी से निपटने के लिए रीयल-टाइम सूचना विनिमय तंत्र विकसित करने पर सहमति जताई।
● सांस्कृतिक सहयोग:-
○ इस यात्रा के दौरान, निकोसिया विश्वविद्यालय में भारत अध्ययन ICCR चेयर की स्थापना के लिए एक समझौता हुआ, जो भारतीय संस्कृति और दर्शन को बढ़ावा देगा।
○ साइप्रस में योग और आयुर्वेद के प्रति बढ़ती रुचि को देखते हुए, दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और मजबूत करने का निर्णय लिया।
साइप्रस में भारत के सामरिक हित:-
साइप्रस भारत के लिए राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक, और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बिंदु इन हितों को विस्तार से समझाते हैं:
● राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन:-
○ UNSC और NSG में समर्थन:-
■ साइप्रस भारत की UNSC स्थायी सदस्यता और NSG सदस्यता की दावेदारी का समर्थन करता है। यह भारत की वैश्विक शक्ति के रूप में उभरती छवि को मजबूत करता है।
○ आतंकवाद विरोधी रुख:-
■ साइप्रस ने पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत का समर्थन किया है, विशेष रूप से पहलगाम हमले (2025) की निंदा करके।
○ साइप्रस मुद्दे पर भारत का समर्थन:-
■ भारत ने 1974 के तुर्की आक्रमण के बाद साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है, जो तुर्की के खिलाफ एक रणनीतिक संदेश है।
● भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC):-
○ IMEC एक बहुपक्षीय परियोजना है, जो भारत, मध्य पूर्व, और यूरोप को समुद्री और स्थलीय मार्गों के माध्यम से जोड़ती है। यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का जवाब है।साइप्रस की स्थिति इसे IMEC में एक महत्वपूर्ण जंक्शन बनाती है।
○ लिमासोल बंदरगाह भारतीय शिपिंग कंपनियों के लिए कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स में महत्वपूर्ण है।इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने IMEC को क्षेत्रीय शांति और आर्थिक एकीकरण के लिए एक परिवर्तनकारी पहल के रूप में रेखांकित किया।
● यूरोपीय संघ (EU) के साथ संबंध:-
○ साइप्रस 2026 में EU परिषद की अध्यक्षता करेगा, जो भारत के लिए EU के साथ व्यापार, सुरक्षा, और डिजिटल साझेदारी को बढ़ाने का अवसर है।दोनों देशों ने भारत-EU मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को 2025 के अंत तक पूरा करने की इच्छा जताई।
○ साइप्रस भारत के लिए EU में एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर सकता है, विशेष रूप से फिनटेक, स्टार्टअप, और रक्षा उद्योग में।
● तुर्की-पाकिस्तान धुरी का जवाब:-
○ तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के खिलाफ नैरेटिव बनाया।भारत ने साइप्रस के साथ संबंधों को मजबूत करके तुर्की की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं (विशेष रूप से पूर्वी भूमध्य सागर में) को चुनौती दी है।
○ साइप्रस और ग्रीस जैसे देशों के साथ भारत का सहयोग तुर्की के लिए एक रणनीतिक चुनौती है।
● आर्थिक लाभ:-
○ साइप्रस भारत में FDI का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जिसका संचयी प्रवाह लगभग 15 बिलियन डॉलर है।साइप्रस का वित्तीय सेवा क्षेत्र, अनुकूल कर व्यवस्था, और शिपिंग उद्योग भारतीय कंपनियों के लिए EU बाजारों में प्रवेश का अवसर प्रदान करते हैं।
○ साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख खिलाड़ी है। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है, साइप्रस के साथ ऊर्जा साझेदारी की संभावनाएं तलाश सकता है
इस प्रकार UNSC एक शक्तिशाली वैश्विक संस्था है, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप वर्तमान विश्व व्यवस्था के अनुरूप नहीं है। इसमें सुधार और लोकतांत्रीकरण आवश्यक है ताकि यह वास्तविक वैश्विक प्रतिनिधित्व और निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित कर सके।
● रक्षा और सुरक्षा सहयोग:-
○ दोनों देशों ने जनवरी 2025 में हस्ताक्षरित द्विपक्षीय रक्षा सहयोग कार्यक्रम की सराहना की, जो साइबर और समुद्री सुरक्षा संवाद को बढ़ावा देता है।आतंकवाद, ड्रग्स, और हथियारों की तस्करी के खिलाफ सूचना आदान-प्रदान के लिए एक तंत्र स्थापित करने पर सहमति हुई।
● वर्तमान उदाहरण:-
○ साइप्रस ने 2025 में UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) के एकीकरण की संभावनाओं पर चर्चा की, जो सीमा-पार भुगतान को आसान बनाएगा।भारत और साइप्रस ने पांच साल का रोडमैप तैयार किया, जिसमें फिनटेक, स्टार्टअप, और रक्षा उद्योग जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है।
यात्रा का महत्व: क्षेत्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य:-
प्रधानमंत्री मोदी की साइप्रस यात्रा का महत्व केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है; यह भारत की वैश्विक रणनीति और क्षेत्रीय संतुलन की नीति का हिस्सा है।
● तुर्की-पाकिस्तान धुरी का जवाब:-
○ साइप्रस यात्रा को तुर्की-पाकिस्तान गठजोड़ के जवाब में एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। तुर्की ने न केवल कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन किया बल्कि भारत के खिलाफ ड्रोन और रक्षा सहायता प्रदान की।
○ साइप्रस, जो तुर्की के साथ ऐतिहासिक विवाद में है, भारत के लिए एक स्वाभाविक सहयोगी है। यह यात्रा तुर्की की विस्तारवादी नीतियों (जैसे पूर्वी भूमध्य सागर में ड्रिलिंग) को चुनौती देती है।
○ उदाहरण :-
■ 2025 में, भारत ने ग्रीस के साथ इंडो-हेलेनिक साझेदारी को मजबूत किया, जिसमें सैन्य और आर्थिक सहयोग शामिल है। यह तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने की भारत की रणनीति का हिस्सा है।
■ साइप्रस ने तुर्की के EEZ में अवैध ड्रिलिंग की निंदा की, जिसमें भारत ने साइप्रस की संप्रभुता का समर्थन किया।
● पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की रणनीति:-
○ भारत की थिंक वेस्ट नीति के तहत, साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की कूटनीतिक और आर्थिक उपस्थिति को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण बिंदु है।
○ साइप्रस और इजराइल के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी (विशेष रूप से ऊर्जा निष्कर्षण में) तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने में मदद कर सकती है।
○ उदाहरण:-
■ 2024 में, भारत ने इज़राइल के हाइफा बंदरगाह में निवेश बढ़ाया, जो IMEC का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साइप्रस की IMEC में भागीदारी इस गलियारे की दक्षता को और बढ़ाएगी।
■ भारत ने 2025 में ग्रीस के साथ सैन्य सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत की उपस्थिति को मजबूत करते हैं।
● IMEC और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी:-
○ IMEC भारत की कनेक्टिविटी और व्यापार रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साइप्रस की स्थिति इसे इस गलियारे में एक महत्वपूर्ण जंक्शन बनाती है।
○ यह यात्रा IMEC को क्षेत्रीय शांति और आर्थिक एकीकरण के लिए एक परिवर्तनकारी पहल के रूप में रेखांकित करती है।
● EU के साथ रणनीतिक साझेदारी:-
○ साइप्रस की 2026 में EU परिषद की अध्यक्षता भारत के लिए EU के साथ संबंधों को गहरा करने का अवसर है।
○ भारत और EU के बीच रणनीतिक वार्ता, व्यापार, और सुरक्षा सहयोग में साइप्रस एक सुविधाजनक भूमिका निभा सकता है।
● वैश्विक कूटनीति में भारत की भूमिका:-
○ साइप्रस यात्रा G7 शिखर सम्मेलन (16-17 जून 2025, कनाडा) से पहले हुई, जो भारत की वैश्विक मंच पर बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
○ यह यात्रा भारत की पड़ोसी पहले, एक्ट ईस्ट, और थिंक वेस्ट नीतियों का एकीकरण है, जो भारत की बहु-वेक्टर विदेश नीति को मजबूत करती है।
● वर्तमान उदाहरण:-
○ साइप्रस ने 2025 में भारत के साथ एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया, जिसमें दोनों देशों ने क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, समृद्धि, और स्थिरता में योगदान देने की प्रतिबद्धता जताई।
○ भारत ने साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस को 2025 में भारत आने का निमंत्रण दिया, जो द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करेगा।
भारत की बहु-वेक्टर विदेश नीति:-
प्रधानमंत्री मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की बहु-वेक्टर विदेश नीति का एक जीवंत उदाहरण है। यह नीति रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर आधारित है। निम्नलिखित बिंदु इस नीति के प्रमुख पहलुओं को दर्शाते हैं:
● रणनीतिक स्वायत्तता:-
○ भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता दी है। साइप्रस जैसे छोटे लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों के साथ संबंधों को मजबूत करके, भारत यह सुनिश्चित करता है कि वह किसी एक महाशक्ति के प्रभाव में न आए।
■ उदाहरण:
● 2025 में, भारत ने क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) दोनों में सक्रिय भूमिका निभाई, जो इसकी बहु-संरेखण नीति को दर्शाता है।
● भारत ने 2024 में रूस के साथ भारत-रूस शिखर सम्मेलन में रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया, जो पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को संतुलित करता है।
● क्षेत्रीय संतुलन:-
○ साइप्रस यात्रा तुर्की और पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने की भारत की रणनीति का हिस्सा है। भारत ने तुर्की के प्रतिद्वंद्वियों—जैसे साइप्रस, ग्रीस, और आर्मेनिया—के साथ संबंधों को मजबूत करके एक कूटनीतिक घेरा बनाया है।
■ उदाहरण:
● 2024 में, भारत ने आर्मेनिया को अकाश मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति की, जो तुर्की और अजरबैजान के लिए एक रणनीतिक संदेश था।
● भारत ने 2025 में ग्रीस के साथ सैन्य सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करते हैं।
● सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति:-
○ भारत ने अपनी सॉफ्ट पावर—जैसे योग, आयुर्वेद, और बॉलीवुड—का उपयोग करके साइप्रस जैसे देशों में अपनी सांस्कृतिक उपस्थिति को बढ़ाया है। यह सांस्कृतिक कूटनीति भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करती है।
■ उदाहरण:
● 2025 में, भारत ने मॉरीशस में भोजपुरी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी सॉफ्ट पावर को प्रदर्शित किया। साइप्रस में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता इस रणनीति का एक और उदाहरण है।
● साइप्रस में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 के आयोजन में स्थानीय समुदाय की भागीदारी ने भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को प्रदर्शित किया।
निष्कर्ष:-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2025 की साइप्रस यात्रा भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह यात्रा न केवल भारत और साइप्रस के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि तुर्की-पाकिस्तान धुरी का मुकाबला करने, IMEC ढांचे को बढ़ावा देने, और पूर्वी भूमध्य सागर में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को स्थापित करने की दिशा में एक सुनियोजित कदम भी है। साइप्रस, अपनी यूरोपीय संघ की सदस्यता, रणनीतिक स्थिति, और तुर्की के साथ प्रतिद्वंद्विता के कारण, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनता है।
● यह यात्रा भारत की बहु-वेक्टर विदेश नीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो रणनीतिक स्वायत्तता, क्षेत्रीय संतुलन, और सॉफ्ट पावर के उपयोग पर आधारित है। वर्तमान उदाहरण, जैसे IMEC में निवेश, ग्रीस और आर्मेनिया के साथ सहयोग, और साइप्रस में सांस्कृतिक कूटनीति, भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाते हैं।
इस प्रकार साइप्रस यात्रा भारत के लिए एक भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण का प्रतीक है, जो न केवल क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है, बल्कि भारत को एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करता है। यह यात्रा “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना को साकार करती है, जो भारत की विदेश नीति का मूलमंत्र है।