वर्तमान परिदृश्य:-
अभी हाल ही में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी दम्मू रवि ने “चिंतन रिसर्च फाउंडेशन” द्वारा आयोजित IMEC सम्मेलन में कहा पश्चिम एशिया में चल रहा संकट भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के पूरा होने में बाधा उत्पन्न कर सकता है,फिर भी “ऐसा नहीं है कि हम फिर से शुरुआती स्थिति में पहुंच गए हैं लेकिन मुझे लगता है कि मध्य पूर्व में संकट IMEC के लिए समस्या या बाधा बन सकता है।उन्होंने कहा, “मेरे विचार में, भू-राजनीतिक मुद्दों और संघर्षों के अलावा, सबसे बड़ी चुनौती जो सामने आ सकती है, वह है सामंजस्य स्थापित करना।” “विभिन्न मंचों, विभिन्न देशों में सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता महत्वपूर्ण है। विनियामक मानकों, आपके तकनीकी और फाइटोसैनिटरी विनियमनों, आपके परिवहन नेटवर्क, कराधान प्रणालियों के संदर्भ में सामंजस्य स्थापित करने के लिए काम करना होगा।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा:-
परिचय:-
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor – IMEC) एक महत्वाकांक्षी बहु-मॉडल कनेक्टिविटी परियोजना है, जिसकी घोषणा सितंबर 2023 में नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। यह परियोजना वैश्विक बुनियादी ढांचा और निवेश साझेदारी (PGII) का हिस्सा है,
- जिसका उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है।
- IMEC में रेल, सड़क, समुद्री मार्ग, बिजली केबल, हाइड्रोजन पाइपलाइन और हाई-स्पीड डेटा केबल शामिल हैं।
- यह गलियारा ऐतिहासिक ‘गोल्डन रोड’ और ‘स्पाइस रूट’ को पुनर्जनन करने का प्रयास करता है, जो कभी यूरेशिया और भारतीय उपमहाद्वीप को जोड़ता था।
- हस्ताक्षरकर्ता
- भारत, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने हस्ताक्षर किए हैं।
- यह परियोजना चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के लिए एक वैकल्पिक और सहयोगात्मक मॉडल के रूप में देखी जाती है।
इस प्रकार IMEC का लक्ष्य रेल, सड़क, समुद्री मार्ग, ऊर्जा पाइपलाइन और डिजिटल कनेक्टिविटी के माध्यम से एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप को जोड़ना है, जिससे पारगमन समय और लागत में कमी आएगी। साथ ही पारंपरिक व्यापार मार्गों, जैसे स्वेज नहर, की तुलना में पारगमन समय को 40% और परिवहन लागत को 30% तक कम करना है। यह परियोजना भारत की “लुक बेस्ट नीति “और अब्राहम समझौते के साथ संरेखित है जो मध्य पूर्व और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाव देने एवं इजरायल और अरब देशों के बीच संबंधो को सामान्य बनाने का प्रयास करता है ।
वैश्विक बुनियादी ढांचा और निवेश साझेदारी (PGII) (Partnership for Global Infrastructure and Investment – PGII) परिचय:- वैश्विक बुनियादी ढांचा और निवेश साझेदारी जी7 देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूरोपीय संघ) द्वारा शुरू की गई एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सार्वजनिक और निजी निवेश के माध्यम से वित्त पोषित करना है। इसे 2022 में जर्मनी में आयोजित 48वें जी7 शिखर सम्मेलन में आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया था। यह पहल 2021 में घोषित बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) योजना का पुनर्जनन है, जिसे बाद में PGII के रूप में पुनः ब्रांडेड किया गया।उद्देश्य:निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा करना।सड़कों, बंदरगाहों, पुलों, संचार व्यवस्थाओं आदि के निर्माण के लिए सुरक्षित वित्त पोषण प्रदान करना, ताकि वैश्विक व्यापार और सहयोग को बढ़ावा मिले।जलवायु परिवर्तन-लचीले बुनियादी ढांचे, लैंगिक समानता, और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देना।चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के जवाब में पारदर्शी और मूल्य-आधारित वैकल्पिक तंत्र प्रदान करना। लक्ष्य:2027 तक जी7 देशों से लगभग 600 बिलियन डॉलर जुटाकर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करना।परियोजनाएं पारदर्शिता, पर्यावरण संरक्षण, और श्रम अधिकारों के मानकों पर आधारित होंगी। प्रमुख विशेषताएं:पारदर्शिता और जवाबदेही: PGII ब्लू डॉट नेटवर्क के विश्वास सिद्धांतों पर आधारित है, जो पारदर्शिता, संप्रभुता, और पर्यावरणीय स्थिरता पर जोर देता है।क्षेत्र: परियोजनाएं मुख्य रूप से स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, जलवायु लचीलापन, और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।उदाहरण:सेनेगल में वैक्सीन सुविधा के लिए 3.3 मिलियन डॉलर की तकनीकी सहायता।भारत में ओमनिवोर एग्रीटेक और क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी फंड में 30 मिलियन डॉलर का निवेश।लैटिन अमेरिका में यूरोपीय आयोग की ग्लोबल गेटवे पहल के तहत mRNA वैक्सीन संयंत्र।चीन की BRI के मुकाबले:PGII को चीन की BRI के विकल्प के रूप में देखा जाता है, जो कथित तौर पर अस्थिर ऋण और अपारदर्शी परियोजनाओं के लिए जानी जाती है।PGII का जोर संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, और टिकाऊ विकास पर है, जो इसे BRI से अलग करता है।भारत के संदर्भ में:भारत PGII के तहत निवेश का लाभ उठा रहा है, विशेष रूप से कृषि, खाद्य सुरक्षा, और जलवायु लचीलापन से संबंधित परियोजनाओं में।भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा (IMEC) भी PGII के तत्वावधान में एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देती है।महत्व:PGII न केवल विकासशील देशों में रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, बल्कि जी7 देशों के आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को भी समर्थन करता है।यह वैश्विक भू-राजनीति में पश्चिमी देशों को चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने का अवसर प्रदान करता है। |
कॉरिडोर खंड IMEC दो प्रमुख खंडों में विभाजित है:पूर्वी गलियारा (East Corridor): यह भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ता है। इसमें भारत के प्रमुख बंदरगाहों से मध्य पूर्व (विशेष रूप से UAE और सऊदी अरब) तक समुद्री और रेल कनेक्टिविटी शामिल है।उदाहरण: भारत के मुंद्रा बंदरगाह से UAE के फुजैरा बंदरगाह तक समुद्री मार्ग स्थापित किया जा रहा है, जो भारत से मध्य पूर्व तक माल परिवहन को सुगम बनाएगा। यह खंड भारत के निर्यात को तेज करने में मदद करेगा, जैसे कि कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स के लिए।उत्तरी गलियारा (North Corridor): यह अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है, जिसमें सऊदी अरब, जॉर्डन, और इज़राइल के माध्यम से यूरोप (ग्रीस और इटली) तक रेल और समुद्री मार्ग शामिल हैं।उदाहरण: सऊदी अरब के दम्मम बंदरगाह से इज़राइल के हाइफा बंदरगाह तक रेल नेटवर्क और फिर ग्रीस के पीरियस बंदरगाह तक समुद्री मार्ग विकसित किया जा रहा है। यह खंड स्वेज नहर की तुलना में 40% तेज पारगमन समय प्रदान करेगा। |
शामिल प्रमुख बंदरगाह भारत:मुंद्रा (गुजरात): भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह, जो निर्यात के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण: कपड़ा और ऑटोमोबाइल निर्यात के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।कांडला (गुजरात): कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए प्रमुख केंद्र। उदाहरण: ऊर्जा निर्यात के लिए कांडला से मध्य पूर्व तक शिपिंग।जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई): कंटेनर शिपिंग का प्रमुख केंद्र। उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स के लिए कंटेनर निर्यात।मध्य पूर्व:फुजैरा (UAE):तेल और गैस निर्यात का प्रमुख केंद्र। उदाहरण: भारत से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए उपयोग।जेबेल अली (UAE): मध्य पूर्व का सबसे बड़ा बंदरगाह, जो री-एक्सपोर्ट हब के रूप में कार्य करता है। उदाहरण: भारत से माल को यूरोप तक री-एक्सपोर्ट करने के लिए।अबू धाबी (UAE): सामरिक और वाणिज्यिक महत्व का बंदरगाह। उदाहरण: भारत से खाद्य उत्पादों का निर्यात।दम्मम और रास अल खैर (सऊदी अरब): औद्योगिक और ऊर्जा निर्यात के लिए। उदाहरण: सऊदी अरब से हाइड्रोजन पाइपलाइन के लिए प्रस्तावित।हाइफा (इज़राइल): मध्य पूर्व और यूरोप के बीच कनेक्टिंग हब। उदाहरण: भारत से माल को यूरोप तक रेल मार्ग से जोड़ने के लिए उपयोग।यूरोप:पीरियस (ग्रीस): यूरोप का प्रवेश द्वार। उदाहरण: भारत से माल को यूरोप के अन्य हिस्सों में वितरण के लिए।मेसिना (दक्षिण इटली): व्यापार और लॉजिस्टिक्स के लिए महत्वपूर्ण। उदाहरण: भारत से आईटी उपकरणों का वितरण।मार्सिले (फ्रांस): यूरोप में प्रमुख व्यापारिक केंद्र। उदाहरण: फ्रांस ने मार्सिले को IMEC के लिए प्रमुख केंद्र के रूप में नामित किया है, जहां से पश्चिमी यूरोप तक माल वितरित होगा। |
IMEC के उद्देश्य :-
IMEC के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- व्यापार और कनेक्टिविटी में वृद्धि:
- पारगमन समय को 40% और परिवहन लागत को 30% कम करके भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: भारतीय कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स का निर्यात मुंद्रा से जेबेल अली और फिर पीरियस तक तेजी से पहुंच रहा है, जिससे व्यापार लागत कम हो रही है।
- पारगमन समय को 40% और परिवहन लागत को 30% कम करके भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा देना।
- आर्थिक एकीकरण:
- क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक एकता को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: भारत और UAE के बीच हाल के समझौतों ने IMEC के तहत व्यापार और निवेश को बढ़ावा दिया है, जैसे कि डिजिटल भुगतान प्रणालियों का एकीकरण।
- क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक एकता को बढ़ावा देना।
- रोजगार सृजन:
- बेहतर कनेक्टिविटी से आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- उदाहरण: सऊदी अरब के दम्मम और रास अल खैर बंदरगाहों पर लॉजिस्टिक्स और विनिर्माण क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि देखी जा रही है।
- बेहतर कनेक्टिविटी से आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी:
- ऊर्जा पाइपलाइन (हाइड्रोजन और गैस) और हाई-स्पीड डेटा केबल के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल एकीकरण को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: भारत से मध्य पूर्व तक समुद्र के नीचे डेटा केबल की स्थापना, जिससे फिनटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है।
- ऊर्जा पाइपलाइन (हाइड्रोजन और गैस) और हाई-स्पीड डेटा केबल के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल एकीकरण को बढ़ावा देना।
- भू-राजनीतिक स्थिरता:
- क्षेत्रीय तनाव को कम करने और वैकल्पिक व्यापार मार्गों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: IMEC ईरान और तुर्की को बायपास करता है, जिससे भू-राजनीतिक तनाव से प्रभावित स्वेज नहर मार्ग का विकल्प प्रदान करता है।
- क्षेत्रीय तनाव को कम करने और वैकल्पिक व्यापार मार्गों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देना।
- पर्यावरणीय स्थिरता:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए हरित और डिजिटल बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: IMEC के तहत प्रस्तावित हाइड्रोजन पाइपलाइन भारत से यूरोप तक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ावा देगी।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए हरित और डिजिटल बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) का महत्व:-
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) एक रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना है, जो भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी और भू-राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन की गई है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से और उदाहरणों के साथ समझा जा सकता है:
- BRI का विकल्प:
- IMEC को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब में एक वैकल्पिक मॉडल के रूप में देखा जाता है। BRI पर कई देशों ने कर्ज के जाल और भू-राजनीतिक निर्भरता की आलोचना की है।
- उदाहरण के लिए, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 साल के लिए लीज पर देना पड़ा, क्योंकि वह कर्ज चुका नहीं सका। IMEC, इसके विपरीत, पारदर्शी और समावेशी आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है, जिसमें भारत, यूएई, सऊदी अरब और यूरोपीय देश शामिल हैं, जो देशों को कर्ज के बोझ के बिना कनेक्टिविटी प्रदान करता है।
- IMEC को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब में एक वैकल्पिक मॉडल के रूप में देखा जाता है। BRI पर कई देशों ने कर्ज के जाल और भू-राजनीतिक निर्भरता की आलोचना की है।
- अरब प्रायद्वीप के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता:
- IMEC भारत को यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने का अवसर देता है।
- उदाहरण के लिए, भारत और यूएई के बीच हाल ही में व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) ने द्विपक्षीय व्यापार को 2022 में 85 बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया। IMEC के माध्यम से बंदरगाहों और रेल नेटवर्क का विकास भारत को इन देशों के साथ और अधिक एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला बनाने में मदद करेगा।
- IMEC भारत को यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने का अवसर देता है।
- मध्य पूर्व में भारत-अमेरिका सहयोग:
- IMEC भारत और अमेरिका के बीच मध्य पूर्व में सहयोग का एक मंच प्रदान करता है, जो पहले मुख्य रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र तक सीमित था।
- I2U2 (भारत, इजरायल, यूएई, और अमेरिका) समूह इसका एक उदाहरण है, जिसने खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग शुरू किया है।
- IMEC के तहत, ये देश संयुक्त रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को विकसित कर सकते हैं, जैसे कि सऊदी अरब और इजरायल के बीच रेल और बंदरगाह कनेक्टिविटी, जो क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देगा।
- IMEC भारत और अमेरिका के बीच मध्य पूर्व में सहयोग का एक मंच प्रदान करता है, जो पहले मुख्य रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र तक सीमित था।
- मध्य पूर्व में स्थिरता:
- IMEC को “शांति के लिए बुनियादी ढांचे” के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह क्षेत्रीय तनाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- उदाहरण के लिए, सऊदी अरब और इजरायल के बीच सामान्यीकरण की प्रक्रिया को IMEC के माध्यम से आर्थिक सहयोग द्वारा समर्थन मिल सकता है। यह गलियारा मध्य पूर्व में व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ाकर क्षेत्रीय स्थिरता को प्रोत्साहित करता है, जैसे कि जॉर्डन और इजरायल के बीच बंदरगाहों का एकीकरण।
- IMEC को “शांति के लिए बुनियादी ढांचे” के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह क्षेत्रीय तनाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- यूरोप का एकीकरण:
- IMEC यूरोप को भारत और मध्य पूर्व के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यूरोपीय संघ का समर्थन इस परियोजना को वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिए, इटली और ग्रीस जैसे यूरोपीय देशों के बंदरगाहों को IMEC के माध्यम से भारत के मुंद्रा या कांडला बंदरगाहों से जोड़ा जा सकता है, जिससे व्यापार लागत और समय में कमी आएगी।
- IMEC यूरोप को भारत और मध्य पूर्व के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यूरोपीय संघ का समर्थन इस परियोजना को वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता प्रदान करता है।
- अफ्रीका के साथ जुड़ाव:
- IMEC की सफलता अफ्रीका के साथ भारत, अमेरिका और यूरोप के सहयोग को बढ़ावा दे सकती है।
- उदाहरण के लिए, ट्रांस-अफ्रीकी गलियारे की प्रस्तावित योजना, जो अंगोला, कांगो और जाम्बिया को जोड़ेगी, IMEC के साथ एकीकृत हो सकती है। भारत पहले से ही अफ्रीका में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, जैसे कि मोज़ाम्बिक में गैस परियोजनाओं में निवेश, और IMEC इस सहयोग को और गहरा कर सकता है।
- IMEC की सफलता अफ्रीका के साथ भारत, अमेरिका और यूरोप के सहयोग को बढ़ावा दे सकती है।
- पाकिस्तान को दरकिनार करना:
- IMEC भारत के लिए एक भू-रणनीतिक सफलता है, क्योंकि यह पाकिस्तान के माध्यम से पश्चिमी देशों के साथ जमीनी संपर्क की आवश्यकता को समाप्त करता है।
- उदाहरण के लिए, भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच के लिए अब तक पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था, जो अक्सर बाधा डालता था। IMEC के माध्यम से, भारत अब सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के साथ समुद्री और रेल मार्गों के माध्यम से सीधे जुड़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय एकीकरण में तेजी आएगी।
- IMEC भारत के लिए एक भू-रणनीतिक सफलता है, क्योंकि यह पाकिस्तान के माध्यम से पश्चिमी देशों के साथ जमीनी संपर्क की आवश्यकता को समाप्त करता है।
IMEC की प्रगति के समक्ष चुनौतियां:-(स्थिति 2023-2025 तक)
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है। हालांकि, इसकी प्रगति में कई चुनौतियाँ बाधा डाल रही हैं। नीचे दी गई चुनौतियों की विस्तृत व्याख्या वर्तमान उदाहरणों के साथ की गई है:
भू-राजनीतिक अस्थिरता
- गाजा संघर्ष:
- गाजा में चल रहा संघर्ष (2023 से निरंतर) पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। यह इज़राइल और अरब देशों (जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) के बीच सामान्यीकरण प्रयासों को कमजोर करता है, जो IMEC की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण के लिए, अब्राहम समझौते (2020) के बाद इज़राइल और कुछ अरब देशों के बीच संबंध सुधरे थे, लेकिन गाजा संघर्ष ने इन कूटनीतिक प्रगतियों को धीमा कर दिया है, जिससे IMEC के लिए क्षेत्रीय सहयोग जटिल हो गया है।
- गाजा में चल रहा संघर्ष (2023 से निरंतर) पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है। यह इज़राइल और अरब देशों (जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) के बीच सामान्यीकरण प्रयासों को कमजोर करता है, जो IMEC की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- क्षेत्रीय अस्थिरता:
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष:
- इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष क्षेत्रीय अस्थिरता का एक प्रमुख कारण है। गाजा पट्टी में हाल के वर्षों में बढ़ते तनाव और हिंसा ने क्षेत्रीय देशों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा किया है।
- यह संघर्ष IMEC जैसे क्षेत्रीय सहयोग परियोजनाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि यह इज़रायल और अरब देशों के बीच सहयोग को जटिल बनाता है।
- इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष क्षेत्रीय अस्थिरता का एक प्रमुख कारण है। गाजा पट्टी में हाल के वर्षों में बढ़ते तनाव और हिंसा ने क्षेत्रीय देशों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा किया है।
- यमन संकट:
- यमन में सऊदी अरब और हौथी विद्रोहियों के बीच चल रहा गृहयुद्ध क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा है। यह संकट लाल सागर में शिपिंग मार्गों को प्रभावित करता है, जो वैश्विक व्यापार और IMEC के लिए महत्वपूर्ण हैं। हौथी हमलों ने समुद्री मार्गों की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं।
- सीरिया और इराक में अस्थिरता:
- सीरिया में गृहयुद्ध और इराक में आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा ने क्षेत्र को अस्थिर किया है। इन देशों में बाहरी शक्तियों (जैसे रूस, अमेरिका, और ईरान) का हस्तक्षेप ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
- यह IMEC के लिए एक चुनौती है, क्योंकि यह क्षेत्रीय सहयोग और बुनियादी ढांचे के विकास को प्रभावित करता है।
- सीरिया में गृहयुद्ध और इराक में आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा ने क्षेत्र को अस्थिर किया है। इन देशों में बाहरी शक्तियों (जैसे रूस, अमेरिका, और ईरान) का हस्तक्षेप ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
- ईरान-सऊदी अरब तनाव:
- ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़ पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव का एक प्रमुख स्रोत है।
- यह तनाव IMEC के लिए एक बाधा है, क्योंकि परियोजना में सऊदी अरब एक प्रमुख भागीदार है, जबकि ईरान को इस गलियारे से बाहर रखा गया है।
- ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़ पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव का एक प्रमुख स्रोत है।
- लाल सागर संकट:
- लाल सागर में बढ़ते तनाव, विशेष रूप से हौथी हमलों के कारण, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रहे हैं। यह संकट IMEC के समुद्री मार्गों के लिए एक जोखिम पैदा करता है, क्योंकि यह परियोजना लाल सागर और स्वेज नहर के वैकल्पिक मार्गों पर निर्भर करती है।
- आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता:
- कई पश्चिम एशियाई देश आर्थिक संकटों, उच्च बेरोजगारी, और सामाजिक अशांति का सामना कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए, लेबनान में आर्थिक पतन और सऊदी अरब में तेल पर निर्भरता कम करने की चुनौतियां क्षेत्रीय सहयोग को प्रभावित करती हैं।
- कई पश्चिम एशियाई देश आर्थिक संकटों, उच्च बेरोजगारी, और सामाजिक अशांति का सामना कर रहे हैं।
स्पष्ट वित्तीय प्रतिबद्धता का अभाव
- वित्तीय रोडमैप का अभाव:
- IMEC का लक्ष्य 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है, लेकिन अभी तक हितधारकों (भारत, सऊदी अरब, यूएई, यूरोपीय संघ, अमेरिका आदि) के बीच लागत-साझाकरण और वित्तीय जिम्मेदारियों का स्पष्ट ढांचा नहीं है।
- उदाहरण के लिए, G20 शिखर सम्मेलन (2023) में IMEC की घोषणा के बाद, कोई ठोस वित्तीय प्रतिबद्धता सामने नहीं आई है, जिससे परियोजना की प्रगति धीमी हो रही है।
- IMEC का लक्ष्य 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है, लेकिन अभी तक हितधारकों (भारत, सऊदी अरब, यूएई, यूरोपीय संघ, अमेरिका आदि) के बीच लागत-साझाकरण और वित्तीय जिम्मेदारियों का स्पष्ट ढांचा नहीं है।
- वैश्विक आर्थिक मंदी:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता, जैसे कि 2022-2023 में बढ़ती ब्याज दरें और मुद्रास्फीति, IMEC जैसे बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक निवेश (3-8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) को जोखिम में डाल रही है।
- उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ के कुछ देश, जो IMEC में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, अपनी घरेलू आर्थिक प्राथमिकताओं (जैसे ऊर्जा संकट) के कारण फंडिंग में देरी कर सकते हैं।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता, जैसे कि 2022-2023 में बढ़ती ब्याज दरें और मुद्रास्फीति, IMEC जैसे बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक निवेश (3-8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) को जोखिम में डाल रही है।
व्यापार व्यवधान की संभावना
- समुद्री व्यापार की नाजुकता:
- स्वेज नहर में एवर गिवेन जहाज का 2021 में फंसना और रूस-यूक्रेन संघर्ष (2022 से) के कारण काला सागर में शिपिंग व्यवधान ने वैश्विक व्यापार मार्गों की भेद्यता को उजागर किया है। IMEC के समुद्री मार्ग, विशेष रूप से अरब सागर और लाल सागर के क्षेत्र, इसी तरह के जोखिमों का सामना कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, 2024 में लाल सागर में हौथी हमलों ने कई शिपिंग कंपनियों को वैकल्पिक मार्ग अपनाने के लिए मजबूर किया, जिससे लागत और समय बढ़ गया।
- स्वेज नहर में एवर गिवेन जहाज का 2021 में फंसना और रूस-यूक्रेन संघर्ष (2022 से) के कारण काला सागर में शिपिंग व्यवधान ने वैश्विक व्यापार मार्गों की भेद्यता को उजागर किया है। IMEC के समुद्री मार्ग, विशेष रूप से अरब सागर और लाल सागर के क्षेत्र, इसी तरह के जोखिमों का सामना कर सकते हैं।
- चीन का सैन्यीकरण:
- हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और क्षेत्रीय देशों (जैसे श्रीलंका और मालदीव) में उसके बुनियादी ढांचा निवेश IMEC के लिए चुनौती पैदा करते हैं।
- उदाहरण के लिए, जिबूती में चीन का सैन्य अड्डा और ग्वादर बंदरगाह (पाकिस्तान) में उसकी उपस्थिति IMEC के समुद्री मार्गों के लिए रणनीतिक जोखिम पैदा करती है।
- हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और क्षेत्रीय देशों (जैसे श्रीलंका और मालदीव) में उसके बुनियादी ढांचा निवेश IMEC के लिए चुनौती पैदा करते हैं।
सीमित भौगोलिक समावेशन
- प्रमुख देशों की गैर-मौजूदगी:
- तुर्की, ईरान, कतर और मिस्र जैसे क्षेत्रीय शक्तियों को IMEC में शामिल नहीं किया गया है, जिससे इसकी भौगोलिक और आर्थिक पहुंच सीमित हो रही है।
- उदाहरण के लिए, तुर्की ने IMEC से बाहर रखे जाने पर असंतोष व्यक्त किया है, क्योंकि वह मध्य पूर्व और यूरोप के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है। इससे वैकल्पिक गलियारों को बढ़ावा देने की संभावना बढ़ सकती है।
- तुर्की, ईरान, कतर और मिस्र जैसे क्षेत्रीय शक्तियों को IMEC में शामिल नहीं किया गया है, जिससे इसकी भौगोलिक और आर्थिक पहुंच सीमित हो रही है।
- राजनीतिक सहयोग की कमी:
- IMEC में शामिल देशों (जैसे भारत, सऊदी अरब, इज़राइल) के राष्ट्रीय हित और गठबंधन भिन्न हैं।
- उदाहरण के लिए, भारत और इज़राइल के बीच मजबूत संबंध हैं, लेकिन सऊदी अरब और इज़राइल के बीच पूर्ण कूटनीतिक सामान्यीकरण अभी तक नहीं हुआ है, जो सहयोग को जटिल बनाता है।
- IMEC में शामिल देशों (जैसे भारत, सऊदी अरब, इज़राइल) के राष्ट्रीय हित और गठबंधन भिन्न हैं।
स्थापित मार्गों से प्रतिस्पर्धा
- स्वेज नहर की स्थापित स्थिति:
- स्वेज नहर वैश्विक व्यापार का एक सिद्ध और लागत-प्रभावी मार्ग है, जो IMEC के लिए एक बड़ी चुनौती है।
- उदाहरण के लिए, 2023 में स्वेज नहर ने वैश्विक व्यापार का लगभग 12-15% हिस्सा संभाला, जबकि IMEC की लागत-प्रभावशीलता अभी साबित नहीं हुई है।
- स्वेज नहर वैश्विक व्यापार का एक सिद्ध और लागत-प्रभावी मार्ग है, जो IMEC के लिए एक बड़ी चुनौती है।
- उच्च लागत का जोखिम:
- यदि क्षेत्रीय अस्थिरता या अन्य चुनौतियाँ बनी रहती हैं, तो IMEC की बुनियादी ढांचा लागत (जैसे बंदरगाहों और रेल नेटवर्क का विकास) इसे एक महंगा विकल्प बना सकती है।
- उदाहरण के लिए, सऊदी अरब और यूएई में प्रस्तावित रेल परियोजनाओं की लागत अनुमान से अधिक हो सकती है, जिससे निवेशकों का विश्वास कम हो सकता है।
- यदि क्षेत्रीय अस्थिरता या अन्य चुनौतियाँ बनी रहती हैं, तो IMEC की बुनियादी ढांचा लागत (जैसे बंदरगाहों और रेल नेटवर्क का विकास) इसे एक महंगा विकल्प बना सकती है।
तकनीकी चुनौतियाँ
- डिजिटल बुनियादी ढांचे का एकीकरण:
- IMEC का डिजिटल गलियारा, जिसमें समुद्र के नीचे डेटा केबल शामिल हैं, को विभिन्न देशों के तकनीकी मानकों को एकीकृत करने में कठिनाई हो रही है।
- उदाहरण के लिए, भारत और यूरोपीय संघ के बीच डेटा ट्रांसफर प्रोटोकॉल में अंतर के कारण निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है।
- IMEC का डिजिटल गलियारा, जिसमें समुद्र के नीचे डेटा केबल शामिल हैं, को विभिन्न देशों के तकनीकी मानकों को एकीकृत करने में कठिनाई हो रही है।
- साइबर सुरक्षा जोखिम:
- वैश्विक डिजिटल बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले एक बड़ा खतरा हैं।
- उदाहरण के लिए, 2021 में अमेरिका की कोलोनियल पाइपलाइन पर रैनसमवेयर हमले ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की भेद्यता को उजागर किया। IMEC के डिजिटल गलियारे को इसी तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से क्षेत्रीय अस्थिरता वाले क्षेत्रों में।
- वैश्विक डिजिटल बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले एक बड़ा खतरा हैं।
भारत के लिए IMEC का महत्व:
आर्थिक लाभ और व्यापार सुगमता:
- तेज और सस्ता व्यापार:
- IMEC स्वेज नहर मार्ग की तुलना में पारगमन समय को 40% और परिवहन लागत को 30% तक कम करने का लक्ष्य रखता है। यह भारत से यूरोप और मध्य पूर्व तक माल की आवाजाही को तेज और लागत प्रभावी बनाएगा।
- आपूर्ति श्रृंखला दक्षता:
- यह गलियारा भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए कच्चे माल और घटकों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जिससे वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
- उदाहरण: 2022-23 में भारत का यूरोप के साथ द्विपक्षीय व्यापार 189 बिलियन डॉलर और उत्तरी अफ्रीका के साथ 15 बिलियन डॉलर था। IMEC इस व्यापार को और बढ़ाने में मदद करेगा, खासकर लाल सागर संकट जैसे व्यवधानों से बचने के लिए।
- यह गलियारा भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए कच्चे माल और घटकों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जिससे वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
रणनीतिक और भू-राजनीतिक महत्व:
- चीन की BRI का विकल्प:
- IMEC को चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के जवाब के रूप में देखा जाता है, जो भारत को वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है। यह परियोजना BRI के “ऋण जाल” मॉडल के विपरीत पारदर्शी और टिकाऊ विकास पर जोर देती है।
- मध्य पूर्व में प्रभाव:
- यह गलियारा भारत को सऊदी अरब, UAE और इज़रायल जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का अवसर देता है। यह I2U2 (भारत, इज़रायल, UAE, अमेरिका) जैसे गठबंधनों को और गहरा करता है।
- उदाहरण: 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान IMEC पर चर्चा हुई, जहां फ्रांस के मार्सिले बंदरगाह को भारत के मुंद्रा जैसे बंदरगाहों के साथ जोड़ने पर सहमति बनी। यह भारत के लिए पश्चिमी यूरोप तक एक वैकल्पिक और छोटा मार्ग प्रदान करता है, जो स्वेज नहर और बाब अल-मंदब जैसे चोक पॉइंट्स से बचता है।
- यह गलियारा भारत को सऊदी अरब, UAE और इज़रायल जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का अवसर देता है। यह I2U2 (भारत, इज़रायल, UAE, अमेरिका) जैसे गठबंधनों को और गहरा करता है।
क्षेत्रीय संपर्क और वैश्विक स्थिति:
- IMEC भारत को मध्य पूर्व और यूरोप के साथ जोड़कर क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देता है, जिससे भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।यह परियोजना भारत को वैश्विक अवसंरचना परियोजनाओं में नेतृत्व करने का अवसर देती है, जिससे उसकी वैश्विक स्थिति मजबूत होती है।
- उदाहरण: जून 2024 में नई दिल्ली में आयोजित चिंतन रिसर्च फाउंडेशन कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) दम्मू रवि ने कहा कि IMEC भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का “ग्लू और एंकर” बना सकता है।
ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी:
- IMEC में हाइड्रोजन पाइपलाइन, फाइबर ऑप्टिक केबल और बिजली केबल बिछाने की योजना है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाएगी।
- उदाहरण: भारत-यूएई वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर की तरह IMEC में डिजिटल व्यापार कॉरिडोर की स्थापना से प्रशासनिक लागत कम होगी और व्यापार दक्षता बढ़ेगी।
सामरिक महत्व:
- IMEC भारत को पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संकटग्रस्त व्यापार मार्गों को बायपास करने में मदद करता है, जिससे प्राचीन “स्पाइस रूट” को पुनर्जनन मिलेगा।
- यह गलियारा रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक संकटों से उत्पन्न आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों को कम करने में मदद करता है।
IMEC के कार्यान्वयन के लिए आगे की राह
IMEC की सफलता के लिए कई रणनीतिक कदम उठाने होंगे जो निम्नलिखित है :-
- क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावादेना:-
- भारत अपनी कूटनीतिक स्थिति का लाभ उठाकर पश्चिम एशिया में युद्धविराम और स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है। यह IMEC के कार्यान्वयन के लिए अनुकूल वातावरण बनाएगा।
- बुनियादी ढांचे का विकास:
- पूर्वी गलियारे (भारत से अरब की खाड़ी) में प्रगति तेज है, विशेष रूप से यूएई और भारतीय बंदरगाहों (मुंद्रा, कांडला, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट) के बीच।
- भारत ने पश्चिमी तटों को रेलवे से जोड़ने के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश शुरू किया है। मध्य पूर्व में रेल नेटवर्क की कमी को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश और तकनीकी मानकीकरण की आवश्यकता है।
- लागत और समय में कमी:
- IMEC का लक्ष्य स्वेज नहर की तुलना में परिवहन समय में 40% और लागत में 30% की कमी लाना है। इसके लिए रेल, सड़क, और समुद्री मार्गों के बीच समन्वय और इंटरमॉडल परिवहन की जटिलताओं को हल करना होगा।
- चीन के BRI के साथ प्रतिस्पर्धा:
- IMEC को चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के जवाब के रूप में देखा जाता है। यह भारत को वैश्विक व्यापार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है, लेकिन इसके लिए भागीदार देशों के बीच मजबूत सहयोग और भू-राजनीतिक संतुलन जरूरी है।
- वैकल्पिक मार्गों का लाभ
- IMEC पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों को बायपास करता है और ईरान के चाबहार बंदरगाह पर निर्भरता कम करता है। यह भारत को मध्य एशिया और यूरोप तक वैकल्पिक पहुंच प्रदान करता है।
भारत की अन्य प्रमुख रणनीतिक अवसंरचना पहल अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):उद्देश्य: रूस के बाल्टिक सागर तट को ईरान के रास्ते भारत के पश्चिमी बंदरगाहों से जोड़ना।लंबाई: 7,200 किमी।हस्ताक्षर: 2002 में भारत, ईरान, और रूस ने प्रारंभिक समझौते किए।सदस्य: 13 देश (भारत, ईरान, रूस, अज़रबैजान, आर्मेनिया, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया); बुल्गारिया पर्यवेक्षक।महत्व: यह गलियारा व्यापार को तेज, सस्ता और अधिक कुशल बनाता है। चाबहार बंदरगाह परियोजना:समझौता: भारत, ईरान, और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता।उद्देश्य: शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल का विकास, जो भारत की पहली विदेशी बंदरगाह परियोजना है।महत्व: पाकिस्तान को बायपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच सुनिश्चित करना, व्यापार को बढ़ावा देना। भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग:उद्देश्य: मणिपुर (मोरेह) से म्याँमार होते हुए थाईलैंड (माई सोत) तक सड़क संपर्क।महत्व: दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत का सड़क संपर्क बढ़ाना। कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट:उद्देश्य: कोलकाता को म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह से समुद्री मार्ग के माध्यम से जोड़ना।महत्व: दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार और संपर्क को बढ़ावा देना। |
निष्कर्ष:-
पश्चिम एशिया में संकट और IMEC के बीच एक जटिल संबंध है। एक ओर, क्षेत्रीय अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनाव IMEC के कार्यान्वयन के लिए चुनौतियां पेश करते हैं, वहीं दूसरी ओर, यह परियोजना क्षेत्र में आर्थिक सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है। भारत, जो इस परियोजना का एक प्रमुख हितधारक है, को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सावधानीपूर्वक रणनीति अपनानी होगी। क्षेत्रीय देशों के बीच विश्वास निर्माण, समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना, और बाहरी शक्तियों के साथ संतुलित कूटनीति IMEC की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगी।IMEC न केवल भारत के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैश्विक व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यदि यह परियोजना सफलतापूर्वक लागू होती है, तो यह न केवल भारत और मध्य पूर्व के बीच, बल्कि एशिया, यूरोप, और मध्य पूर्व के बीच एक नया आर्थिक युग शुरू कर सकती है।