संस्थागत नैतिकता और संवैधानिक प्रतीकवाद

            a. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लेडी जस्टिस की प्रतिमा: प्रतीकवाद और लैंगिक न्याय


                                             विद्यार्थियों के लिए नोट्स

लेख का प्रसंग:-

 16 अक्टूबर 2024 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में लेडी जस्टिस की एक नई कल्पित प्रतिमा का अनावरण किया। इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसमें आँखें खुली हुई हैं और तलवार की जगह भारतीय संविधान की प्रति है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में यह कदम उठाया गया, जो भारत में न्याय की दृष्टि को प्रतीकात्मक रूप से पुनर्परिभाषित करता है। यह परिवर्तन न्याय की संवैधानिक नैतिकता, लैंगिक न्याय और संस्थागत पारदर्शिता को मजबूती प्रदान करता है और औपनिवेशिक व पितृसत्तात्मक कानूनी प्रतीकवाद से अलग राह दिखाता है।

UPSC पाठ्यक्रम से संबंधित विषय:-

  • GS पेपर II: भारतीय संविधान – विशेषताएँ, संशोधन और न्यायपालिका की भूमिका
  • GS पेपर II: शासन में नैतिकता – संस्थागत अखंडता और जवाबदेही
  • GS पेपर I: भारतीय समाज – लैंगिक और सामाजिक न्याय

लेख के आयाम:-

  • 1. भारतीय संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में लेडी जस्टिस का प्रतीकवाद
  • 2. खुली आँखें और औपनिवेशिक कानूनी प्रतीकवाद से विमुखता
  • 3. तलवार की जगह संविधान: विधि के शासन के निहितार्थ
  • 4. लैंगिक न्याय और संस्थागत प्रतिनिधित्व
  • 5. उपनिवेशोत्तर युग में कानूनी सुधार और संवैधानिक नैतिकता

समाचार में क्यों?:-

पारंपरिक लेडी जस्टिस की प्रतिमा—आँखों पर पट्टी बाँधे, तराजू और तलवार धारण किए स्त्री—लंबे समय से पश्चिमी कानूनी व्यवस्था में निष्पक्षता और अधिकार का प्रतीक रही है। किंतु अक्टूबर 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतीक की आधुनिक कल्पना प्रस्तुत की। नई प्रतिमा में आँखें खुली हैं, हाथ में तराजू और तलवार की जगह भारतीय संविधान है। यह परिवर्तन, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में, औपनिवेशिक प्रतीकवाद से जानबूझकर दूर जाते हुए संविधान-आधारित और समावेशी न्याय की अवधारणा को अपनाता है।

समाचार की मुख्य विशेषताएँ:-

1. कानूनी प्रतीकवाद की नई परिकल्पना:-

  • पारंपरिक लेडी जस्टिस की प्रतिमाओं में पट्टी निष्पक्षता का और तलवार दंडात्मक शक्ति का प्रतीक होती है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नई प्रतिमा में पट्टी हटा दी गई है, जो जागरूकता, समावेशन और संदर्भ-संवेदनशील न्याय को दर्शाती है।
  • तलवार की जगह संविधान है, जो संकेत करता है कि शक्ति लोकतांत्रिक मूल्यों से आती है, न कि बल प्रयोग से।

2. लैंगिक न्याय और नारीवादी कानूनी प्रतीकवाद:-

  • यह प्रतिमा न्याय को हिंसक और औपनिवेशिक छवि से हटाकर स्त्रियों की सक्रियता और संविधान-आधारित न्याय के केंद्र में लाती है।
  • यह सर्वोच्च न्यायालय की विकसित होती न्याय-व्याख्या से जुड़ी है, जैसे लैंगिक समानता, प्रजनन अधिकार, LGBTQIA+ की मान्यता और अंतरविभाजक न्याय। (उदा: नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ [2018], के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ [2017])।

3. कानूनी औपचारिकता के स्थान पर संवैधानिक नैतिकता:-

  • प्रतिमा यह पुनः पुष्टि करती है कि न्यायिक आचरण का मार्गदर्शन archaic formalism (पुरानी औपचारिकता) नहीं, बल्कि संवैधानिक नैतिकता से होना चाहिए।
  • संविधान थामे हुए आकृति यह दर्शाती है कि न्याय का आधार गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों में निहित है।

4. औपनिवेशिक कानूनी विरासत से विमुखता:-

यह प्रतिमा हाल के कानूनी सुधारों के साथ मेल खाती है, जिनसे औपनिवेशिक कानूनों की जगह नए कानून आए:

  • भारतीय दंड संहिता (1860) → भारतीय न्याय संहिता, 2023
  • दंड प्रक्रिया संहिता (1973) → भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) → भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023

यह बदलाव भारत की उस आकांक्षा को दर्शाता है, जिसमें वह अपने विधिक संस्थानों को उपनिवेशवाद से मुक्त कर संप्रभु संवैधानिक पहचान को पुनर्स्थापित करना चाहता है।

5. संस्थागत नैतिकता और पारदर्शिता:-

  • खुली आँखें सतर्कता, न्यायिक जवाबदेही और सामाजिक वास्तविकताओं के प्रति सजगता को दर्शाती हैं, जो न्यायपालिका की aloofness (अलगाव) की आलोचना का प्रत्युत्तर हैं।
  • न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में प्रतिमा का स्थापित होना तर्कसंगत विचार-विमर्श के महत्व को पुनः रेखांकित करता है, प्रतिशोध से ऊपर उठकर।

विस्तृत व्याख्या:-

1. आँखों पर पट्टी क्यों हटाई गई?

पारंपरिक पश्चिमी प्रतीकवाद में पट्टी निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का प्रतीक थी—न्याय को धन, शक्ति, पहचान या दर्जे से प्रभावित नहीं होना चाहिए। किंतु भारतीय संदर्भ में इस पर आलोचना हुई कि यह प्रतीक सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं की अनदेखी करता है।

  • नई प्रतिमा से पट्टी हटाना कानूनी औपचारिकता से सचेत दूरी है। खुली आँखें दर्शाती हैं कि न्यायपालिका जाति, लिंग और वर्ग की असमानताओं को देखती-समझती है और हाशिए पर पड़े समुदायों के अनुभवों को ध्यान में रखकर कानून की व्याख्या करती है। 
  • यह अनुच्छेद 14, 15 और 21 में निहित समानता के संवैधानिक दृष्टिकोण के अनुरूप है।

2. तलवार की जगह संविधान क्यों रखा गया?

तलवार राज्य की दंडात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो औपनिवेशिक बल-आधारित न्याय को दर्शाती थी।

अब संविधान की प्रति न्याय की असली शक्ति के रूप में उभरी है, क्योंकि वही लोकतांत्रिक अधिकारों, शक्तियों की सीमाओं और न्यायिक पुनरावलोकन का स्रोत है।

  • यह Transformative Constitutionalism (परिवर्तनकारी संवैधानिकता) के अनुरूप है, जहाँ न्यायपालिका सक्रिय भूमिका निभाते हुए समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लक्ष्यों को साकार करती है।

3. न्यायिक सुधारों से संबंध:-

यह प्रतिमा न्यायिक भारतीयकरण (Indianization of legal system) और प्रतीकवाद के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह औपनिवेशिक कानूनों के स्थान पर नए नागरिक-केंद्रित कानूनों के लागू होने के साथ जुड़ी है।

  • यहाँ तक कि न्यायपालिका ने भी प्रगतिशील व्याख्याएँ दी हैं—निजता, गरिमा, लैंगिक समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर।

4. UPSC अभ्यर्थियों के लिए महत्व:-

यह प्रतीकात्मक परिवर्तन अभ्यर्थियों को इन विषयों पर गहरी समझ देता है:

  • न्यायिक सुधार और शक्तियों का पृथक्करण
  • शासन में नैतिकता और संस्थागत जवाबदेही
  • भारतीयकरण और संस्थागत लोकतंत्रीकरण
  • सामाजिक न्याय और संवैधानिक नैतिकता
  • उत्तर लेखन, निबंध और Ethics Paper में इसका उल्लेख अभ्यर्थियों को ठोस उदाहरण देने में मदद करेगा।

निष्कर्ष:-

खुली आँखों और संविधान की प्रति धारण किए लेडी जस्टिस की नई प्रतिमा भारत की कानूनी व्यवस्था में प्रतीकात्मक और संस्थागत स्तर पर एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करती है। यह पारदर्शिता, सजगता और संविधान-निष्ठ न्याय की आकांक्षा को दर्शाती है, जो लैंगिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों के प्रति संवेदनशील है।

  •  यह परिवर्तन केवल सौंदर्यपरक नहीं, बल्कि नैतिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है—संस्थागत सुधार, लैंगिक-समावेशी न्यायशास्त्र और लोकतांत्रिक प्रतीकवाद का। 
  • जैसे-जैसे भारत उपनिवेशवाद से मुक्त होकर संवैधानिक गहराई की ओर बढ़ रहा है, यह प्रतिमा परिवर्तनकारी संवैधानिकता की उस भावना को पुष्ट करती है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी।

Share:

Facebook
X
LinkedIn
WhatsApp
Email
Grab a Free Quote!
Request your free, no-obligation quote today and discover how Byol Academy can transform your Learning Career. We'll get in touch as soon as possible.
Free Quote

Related Articles