संस्थागत नैतिकता और संवैधानिक प्रतीकवाद

                                c. भारत का पहला संविधान संग्रहालय


                                          विद्यार्थियों के लिए नोट्स

संदर्भ:-

 भारत का पहला संविधान संग्रहालय ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू), सोनीपत, हरियाणा में भारत के संविधान अंगीकरण की 75वीं वर्षगांठ पर उद्घाटित किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण संस्थागत विकास है जो संवैधानिक साक्षरता को सुदृढ़ करता है, नागरिक भागीदारी को गहराता है और भारतीय राजनीति में निहित लोकतांत्रिक तथा नैतिक मूल्यों को प्रतीकात्मक रूप से पुनः पुष्ट करता है।

UPSC पेपर विषय:-

  • GS पेपर II – भारतीय संविधान, संवैधानिक मूल्य, संसद और न्यायपालिका की भूमिका
  • GS पेपर IV – शासन में नैतिकता, संस्थानों की भूमिका, प्रतीकवाद और सार्वजनिक नैतिकता
  • निबंध – राष्ट्र-निर्माण और संवैधानिक नैतिकता

लेख के आयाम:-

  • 1. लोकतंत्र को गहराने में संवैधानिक प्रतीकवाद की भूमिका
  • 2. संस्थागत नैतिकता और सार्वजनिक स्मृति
  • 3. सार्वजनिक शिक्षा में संविधान संग्रहालय का महत्व
  • 4. नागरिक भागीदारी में दृश्य संस्कृति और तकनीक की भूमिका
  • 5. भारत में संवैधानिकता पर विधिक और नैतिक चिंतन

समाचार में क्यों?:-

नवंबर 2024 में, लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला और विधि एवं न्याय राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में भारत का पहला संविधान संग्रहालय उद्घाटित किया। यह संग्रहालय संविधान अंगीकरण की 75वीं वर्षगांठ को समर्पित है और संवैधानिक साक्षरता तथा लोकतांत्रिक नैतिकता को संस्थागत रूप देने के राष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है। इसमें होलोग्राफी, रोबोटिक्स (संविधान-थीम वाला गाइड रोबोट S.A.M.V.I.D.), इमर्सिव आर्ट और मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग का उपयोग किया गया है, जो भारत की संवैधानिक यात्रा और संविधान निर्माताओं के बलिदानों को दर्शाता है—विशेष रूप से संविधान सभा की महिला सदस्यों के योगदान पर आधारित प्रदर्शनी के साथ।

समाचार की विशेषताएँ:-

1. संवैधानिक नैतिकता का संस्थानीकरण:-

  • संविधान संग्रहालय, डॉ. बी.आर. अंबेडकर के उस आह्वान को मूर्त रूप देता है जिसमें उन्होंने केवल कानून के अक्षर का पालन नहीं बल्कि उसकी आत्मा को अपनाने का आग्रह किया था।
  • लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने रेखांकित किया कि संविधान केवल विधिक पाठ नहीं बल्कि भारत के सामाजिक-राजनीतिक विकास का रूपांतरणकारी दस्तावेज है।

2. कला, नैतिकता और सार्वजनिक स्मृति:-

  • संग्रहालय में “Founding Mothers” और “इंसाफ की देवी” जैसी मूर्तियाँ हैं, जो न्याय, समावेशन और समानता जैसे नैतिक आदर्शों को दर्शाती हैं।
  • इसमें संविधान की मूल प्रति के फोटो-लिथोग्राफिक पुनरुत्पादन भी हैं, जिससे कैलिग्राफर प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा और कलाकार नंदलाल बोस जैसे व्यक्तित्वों के योगदान को मान्यता मिलती है।

3. तकनीकी नवाचार और सुगमता:-

  • आईआईटी मद्रास और जेजीयू ने मिलकर S.A.M.V.I.D. नामक रोबोटिक गाइड विकसित किया है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नैतिक शिक्षा का समन्वय है।
  • होलोग्राम, एनीमेशन और भित्तिचित्रों के माध्यम से संवैधानिक शिक्षा को युवाओं के लिए रोचक और आधुनिक बनाया गया है, खासकर अनुच्छेद 51(क) यानी मूल कर्तव्यों पर आधारित शिक्षण सामग्री के रूप में।

4. लैंगिक और लोकतांत्रिक समावेशन:-

  • संग्रहालय में संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों—जैसे दाक्षायणी वेलायुधन, हंसा मेहता और दुर्गाबाई देशमुख—के योगदान को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया है। 
  • यह संवैधानिक इतिहास में लैंगिक समावेशन और नैतिकता का प्रतीक है।

5. विधिक प्रतीकवाद और लोकतांत्रिक नागरिकता:-

  • प्रदर्शनी का केंद्रबिंदु “We, The People of India” शीर्षक है, जो संविधान को केवल दस्तावेज नहीं बल्कि एक जीवंत अनुभव के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • यह पहल संसद भाषा (Sansad Bhashini) और इंडियाAI मिशन जैसे हाल के सरकारी प्रयासों के अनुरूप है, जिनका उद्देश्य विधिक और शासन-संबंधी सामग्री को डिजिटल और क्षेत्रीय भाषाओं में सुलभ बनाना है।

व्याख्या:-

1. संवैधानिक प्रतीकवाद क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

संवैधानिक प्रतीकवाद का अर्थ है—सार्वजनिक संस्थानों, स्मृति स्थलों, अनुष्ठानों, राष्ट्रीय पर्वों और दृश्य संस्कृति का उपयोग करके संविधान में निहित मूल्यों—स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुता—को जनता तक पहुँचाना और सुदृढ़ करना।

  • ये केवल सजावटी प्रतीक नहीं बल्कि शैक्षिक और भावनात्मक कार्य करते हैं। ये अमूर्त आदर्शों को दृश्य और स्मरणीय बनाते हैं।
  • भारत का पहला संविधान संग्रहालय इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। यहाँ संविधान की कैलिग्राफ़ की हुई प्रतियाँ, संविधान सभा सदस्यों की मूर्तियाँ, डॉ. अंबेडकर के होलोग्राम और “We, the People”, “Founding Mothers” जैसी कला-कृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं। 
  • इस प्रकार यह संग्रहालय संवैधानिक देशभक्ति को प्रोत्साहित करता है, जो अंध निष्ठा पर नहीं बल्कि लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति सूचित आस्था पर आधारित है।
  • यह विचार संवैधानिक नैतिकता से जुड़ा है—जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ (2018) जैसे ऐतिहासिक फैसलों में स्पष्ट किया—जहाँ यह कहा गया कि सार्वजनिक पदाधिकारी केवल कानूनी प्रावधानों से नहीं बल्कि संविधान की आत्मा और नैतिकता से संचालित हों।

2. संविधान संग्रहालय और संस्थागत नैतिकता का संबंध:-

संस्थागत नैतिकता से तात्पर्य है—वे नैतिक मानदंड और सिद्धांत जो किसी भी सार्वजनिक संस्था के संचालन को निर्देशित करते हैं, ताकि वह नागरिकों की सेवा जवाबदेही, पारदर्शिता, न्याय और निष्पक्षता के साथ कर सके।

  • संविधान संग्रहालय संस्थागत नैतिकता को दो रूपों में मूर्त करता है:
  • यह एक नैतिक संस्थान के रूप में नागरिकों को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और प्रक्रियाओं के प्रति जागरूक करता है।
  • यह विधायकों और जन-प्रतिनिधियों के लिए भी दर्पण का कार्य करता है, यह पूछते हुए कि क्या वर्तमान संस्थाएँ 1950 में स्थापित नैतिक अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हैं।

3. संविधान संग्रहालय भारत में संवैधानिक साक्षरता को कैसे समर्थन देता है?

संवैधानिक साक्षरता का अर्थ केवल संविधान पढ़ना नहीं बल्कि उसकी नैतिक दृष्टि, ऐतिहासिक संदर्भ और दैनिक जीवन में उसकी प्रासंगिकता को समझना है।

  • संविधान संग्रहालय इस कमी को दूर करता है:
  • डिजिटल स्टोरीटेलिंग, रोबोटिक्स (S.A.M.V.I.D.), 360° ऐतिहासिक पुनर्निर्माण, होलोग्राफिक भाषण और इंटरएक्टिव कला जैसी तकनीकों का उपयोग करके।
  • संविधान सभा के कम चर्चित सदस्यों, विशेषकर महिलाओं को केंद्र में रखकर।
  • मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और राज्य के नीति निदेशक तत्वों पर आधारित प्रदर्शनी के माध्यम से।
  • यह एनसीईआरटी के नई पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 (NCF 2023) के अनुरूप है, जो स्कूल शिक्षा में संवैधानिक मूल्यों पर बल देता है।

4. लोकतंत्र में ऐसे प्रतीकात्मक संस्थानों की भूमिका क्या है?

एक स्वस्थ लोकतंत्र केवल कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के यांत्रिक संचालन से नहीं चलता, बल्कि एक लोकतांत्रिक संस्कृति से पोषित होता है।

  • संविधान संग्रहालय, राष्ट्रीय ध्वज फहराने के अधिकार (जैसा कि नवीन जिंदल ने अभियान चलाया), और संविधान दिवस जैसे अवसर इस संस्कृति को जीवित रखते हैं।
  • डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र से पूरक होना चाहिए। प्रतीकात्मक संस्थान इस दृष्टि को मूर्त करते हैं:
  • संवैधानिक संघर्ष और बलिदानों की स्मृति बनाए रखते हैं।
  • युवाओं में अतीत से नैतिक जुड़ाव पैदा करते हैं।
  • नागरिक जिम्मेदारी और सहभागिता को पुनर्जीवित करते हैं।
  • आज जब जनवाद, कानूनी उदासीनता और डिजिटल मिथ्या-सूचनाएँ बढ़ रही हैं, ऐसे संस्थान लोकतंत्र के लिए नैतिक और संवैधानिक स्पष्टता के स्तंभ हैं।

निष्कर्ष:-

ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में स्थापित संविधान संग्रहालय भारत की सहभागी, नैतिक और समावेशी लोकतंत्र की यात्रा का मील का पत्थर है। ऐसे समय में जब विश्वभर में लोकतांत्रिक पतन, कानूनी निरक्षरता और संस्थागत अविश्वास चिंता का विषय हैं, यह संग्रहालय शासन को सार्वजनिक स्मृति और नैतिक चेतना से जोड़ता है।

  • भविष्य में सरकार को चाहिए कि—
  • ऐसे संग्रहालयों को देशभर में स्थापित करे,
  • विद्यालयी पाठ्यक्रम में इन्हें जोड़ दे,
  • और सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बीच समान पहुँच सुनिश्चित करे।

 ये संस्थाएँ केवल स्मरणीय स्थल नहीं हैं, बल्कि शिक्षण, दार्शनिक और गहन रूप से संवैधानिक परियोजनाएँ हैं।

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