छात्रों के लिए नोट्स
लेख का संदर्भ:-
INS अरिघाट, भारत की दूसरी स्वदेशी रूप से निर्मित परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN), 29 अगस्त 2024 को विशाखापट्टनम में भारतीय नौसेना में शामिल की गई। यह पनडुब्बी भारत की समुद्र-आधारित परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती है, जिससे परमाणु त्रयी (nuclear triad) और सेकंड-स्ट्राइक (second-strike) की क्षमता में योगदान मिलता है ([The Diplomat][2])।
UPSC GS पेपर विषय:-
- GS पेपर III – भारतीय सुरक्षा और रक्षा: परमाणु प्रतिरोधक क्षमता, सामरिक बल, रक्षा तत्परता
- GS पेपर III – विज्ञान और प्रौद्योगिकी: स्वदेशी परमाणु प्रणोदन, मिसाइल तकनीक, रक्षा विनिर्माण
लेख के आयाम:-
- स्वदेशी रक्षा उत्पादन और आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत)
- परमाणु त्रयी का समुद्र-आधारित पहलू और विश्वसनीय सेकंड-स्ट्राइक क्षमता
- चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में सामरिक संतुलन
- तकनीकी प्रगति: रिएक्टर, स्टेल्थ, मिसाइल पेलोड
- भविष्य की क्षमता निर्माण: S4, S5 वर्ग और लंबी दूरी की SLBM मिसाइलें
वर्तमान संदर्भ:-
अगस्त 2025 तक, भारत दो अरिहंत-वर्ग की SSBN पनडुब्बियों का संचालन कर रहा है: INS अरिहंत और INS अरिघाट। अरिघाट अधिक उन्नत है, जिसमें बेहतर स्टेल्थ, धीरज (endurance) और रिएक्टर प्रदर्शन है। भारत बड़े S5-वर्ग की SSBN पनडुब्बियों पर भी काम कर रहा है (लगभग 2027 से उत्पादन शुरू होने की संभावना), जो लंबी दूरी की K-5/K-6 SLBM मिसाइलों से लैस होंगी और वैश्विक पहुंच प्रदान करेंगी।
समाचार की विशेषताएँ:-
- 29 अगस्त 2024 को विशाखापट्टनम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में कमीशन किया गया, जिसमें सामरिक संतुलन और आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया।
- 6,000 टन की इस पनडुब्बी में उन्नत 83 MW कॉम्पैक्ट लाइट-वॉटर रिएक्टर है, जो कम ध्वनिक हस्ताक्षर (acoustic signature) और अधिक जलमग्न सहनशीलता (endurance) देता है।
- इसमें चार ऊर्ध्वाधर प्रक्षेपण ट्यूब हैं और यह 12 K-15 SLBM (750 किमी रेंज) या 4 K-4 SLBM (3,500 किमी रेंज) ले जा सकती है।
- पाकिस्तान और चीन के विरुद्ध सेकंड-स्ट्राइक क्षमता, समुद्र के नीचे जीवित रहने की संभावना और सामरिक प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
- DRDO, उद्योग और भारतीय नौसेना द्वारा स्वदेशी डिज़ाइन और विनिर्माण की परिपक्वता को दर्शाता है।
व्याख्या:-
प्रश्न 1: INS अरिघाट क्या है और यह सामरिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है?
- INS अरिघाट भारत की दूसरी स्वदेशी SSBN है, जिसे 29 अगस्त 2024 को विशाखापट्टनम में नौसेना में शामिल किया गया।
- अरिहंत-वर्ग का हिस्सा होने के नाते यह भारत की समुद्र-आधारित परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है, जिससे सेकंड-स्ट्राइक क्षमता बढ़ती है। यह परमाणु त्रयी को सुदृढ़ करता है और स्वदेशी डिज़ाइन एवं उत्पादन के माध्यम से सामरिक स्वायत्तता को रेखांकित करता है।
- इसका संचालन सुनिश्चित करता है कि भारत समुद्र में एक गुप्त और परमाणु-सुसज्जित मंच बनाए रख सके, जो विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक (Credible Minimum Deterrence) की अवधारणा को बल देता है।
प्रश्न 2: INS अरिघाट भारत की परमाणु प्रतिरोधक मुद्रा को कैसे मजबूत करता है?
- दूसरी SSBN जोड़ने से भारत निरंतर जलमग्न गश्त कर सकता है, जिससे कम से कम एक परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बी हमेशा परिचालन और गुप्त रहती है।
- इसकी उन्नत स्टेल्थ, सहनशीलता और लंबी दूरी की मिसाइल क्षमता (K-4 SLBM ~3,500 किमी) गहरे हमले की क्षमता देती है।
- यह भारत की पहला प्रयोग न करने (No First Use – NFU) नीति का समर्थन करता है, क्योंकि प्रथम हमले के बाद भी सुनिश्चित प्रतिशोध की गारंटी रहती है।
प्रश्न 3: अरिघाट को इसके पूर्ववर्ती अरिहंत से कौन से तकनीकी गुण अलग बनाते हैं?
- हालांकि अरिघाट अरिहंत-वर्ग की ही संरचना साझा करता है, इसमें अधिक उन्नत 83 MW कॉम्पैक्ट लाइट-वॉटर रिएक्टर है, जो कम ध्वनि उत्पन्न करता है और अधिक समय तक जलमग्न रहने की क्षमता प्रदान करता है।
- यह K-15 और लंबी दूरी की K-4 SLBM दोनों का समर्थन करता है। इसमें युद्ध प्रणाली, सामग्रियों और एकीकरण में भी सुधार किए गए हैं, जो अधिक स्वदेशी योगदान और इंजीनियरिंग परिपक्वता को दर्शाते हैं। इसका जलमग्न परिचालन वेग 24 नॉट तक है, जिससे गुप्त गश्त संभव होती है।
प्रश्न 4: भारत की SSBN क्षमताओं को भविष्य में कौन-से विकास आगे बढ़ाएँगे?
- भारत दो अतिरिक्त अरिहंत-वर्ग पनडुब्बियों (S-4 और S-3) पर काम कर रहा है। बड़े S5-वर्ग की पनडुब्बियाँ, जिनका उत्पादन लगभग 2027 से शुरू होगा, ~13,500 टन वजनी होंगी और इनमें 12 तक K-6 (या K-5) SLBM होंगी, जिनकी मारक क्षमता ~12,000 किमी होगी।
- यह भविष्य के प्लेटफॉर्म प्रतिरोधक गहराई और जीवित रहने की संभावना को अत्यधिक बढ़ाएँगे।
प्रश्न 5: भारत की समुद्र-आधारित परमाणु प्रतिरोधक क्षमता के सामने कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- मुख्य चुनौती SSBN बेड़े का सीमित आकार है; केवल दो परिचालन पनडुब्बियों के कारण गश्ती तैनाती सीमित रहती है। इसके अतिरिक्त, लगभग 30% बेड़ा हमेशा मरम्मत/रीफिट में रहता है, जिससे निरंतरता बाधित होती है। मिसाइलों की दूरी अभी भी वैश्विक शक्तियों की तुलना में कम है। गश्त के दौरान मज़बूत संचार और उच्च स्वदेशी विनिर्माण क्षमता बनाए रखना आवश्यक है ताकि प्रतिरोधक क्षमता विश्वसनीय बनी रहे।
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निष्कर्ष
INS अरिघाट का कमीशन होना भारत की परमाणु प्रतिरोधक संरचना को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, विशेष रूप से इसकी समुद्र-आधारित सेकंड-स्ट्राइक क्षमता में। उन्नत रिएक्टर, स्टेल्थ, मिसाइल प्रणाली और अधिक स्वदेशी तकनीक के साथ अरिघाट सामरिक परिपक्वता और आत्मनिर्भरता दोनों को दर्शाता है। आगे चलकर SSBN बेड़े का विस्तार और S5-वर्ग के माध्यम से लंबी दूरी की SLBM को एकीकृत करना प्रतिरोधक विश्वसनीयता को और मजबूत करेगा। जटिल भू-राजनीतिक वातावरण में, INS अरिघाट भारत की रणनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
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