(ब्रिटिशों की वेल्सली की सहायक संधि और डलहौजी के व्यपगत सिद्धांत के माध्यम से विस्तारवादी नीतियाँ, कूटनीति को प्रभुत्व में बदलने की औपनिवेशिक रणनीति की दिशा में बदलाव को दर्शाती हैं।)
यह विषय UPSC GS Paper I (आधुनिक भारतीय इतिहास) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और GS Paper II (शासन और राजनीति) से भी जुड़ता है। इसमें उपनिवेशीय विस्तार, प्रशासनिक रणनीतियाँ और प्रतिरोध जैसे विषय शामिल हैं — जो Mains उत्तर लेखन के लिए केंद्रीय हैं। साथ ही यह Prelims के लिए उच्च-मूल्य तथ्य एवं Essay व Ethics के लिए विश्लेषणात्मक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। |
I. वेल्सली की सहायक संधि (Subsidiary Alliance)
लॉर्ड वेल्सली, जो 1798 से 1805 तक गवर्नर-जनरल रहे, ने भारतीय राज्यों को बिना प्रत्यक्ष विलय के ब्रिटिश प्रभाव में लाने के लिए एक रणनीतिक कूटनीतिक उपकरण के रूप में सहायक संधि की रचना की।
संधि की प्रमुख शर्तें:
- भारतीय शासक को अपने क्षेत्र में एक स्थायी ब्रिटिश सेना को रखना होता था और उसके खर्च की जिम्मेदारी उठानी होती थी।
- शासक बिना ब्रिटिश अनुमति के कोई संधि या युद्ध नहीं कर सकता था।
- एक ब्रिटिश रेज़िडेंट को शासक के दरबार में तैनात किया जाना था।
- शासक को अपनी सेना भंग कर ब्रिटिश सहायक बल को मान्यता देनी होती थी।
प्रयोग:
- हैदराबाद पहला राज्य था जिसने 1798 में यह संधि स्वीकार की।
- मैसूर पर यह नीति 1799 में टीपू सुल्तान की हार के बाद थोप दी गई।
- अवध ने 1801 में बड़े हिस्से को सौंपने का दबाव झेला।
- मराठा राज्य जैसे कि बसेन (1802) भी द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध के बाद इस व्यवस्था के अंतर्गत आए।
परिणाम:
- भारतीय खजाने पर भारी बोझ पड़ा, राज्यों की स्वायत्तता घट गई, और ब्रिटिश प्रभुत्व में विस्तार हुआ।
II. डलहौज़ी का व्यपगत सिद्धांत (Doctrine of Lapse)
लॉर्ड डलहौज़ी, जिन्होंने 1848 से 1856 तक गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया, ने भारतीय रियासतों को हड़पने के लिए इस सिद्धांत का उपयोग किया।
सिद्धांत:
- यदि कोई शासक प्राकृतिक पुरुष उत्तराधिकारी के बिना मर जाता, तो उसका राज्य ब्रिटिश शासन में ‘व्यपगत’ हो जाता।
- दत्तक उत्तराधिकारी को मान्यता नहीं दी जाती थी, जब तक कि ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकृति न दी जाए।
मुख्य अधिग्रहण (Annexed States):
- सतारा (1848)
- संभलपुर और जैतपुर (1849)
- बघाट और उदयपुर (1852)
- झाँसी (1853) – रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार किया गया।
- नागपुर (1854)
प्रभाव:
- इस नीति से व्यापक असंतोष फैला।
- इसे भारतीय संप्रभुता और परंपराओं पर सीधा हमला माना गया।
III. अवध का विलय (1856)
अवध का विलय व्यपगत सिद्धांत के अंतर्गत नहीं हुआ, बल्कि दुशासन के आधार पर किया गया।
आधिकारिक कारण:
- ब्रिटिशों ने अव्यवस्था और कानूनहीनता को कारण बताया।
वास्तविक उद्देश्य:
- अवध की रणनीतिक स्थिति और धन-संपन्नता ब्रिटिशों को आकर्षित कर रही थी।
परिणाम:
- नवाब वाजिद अली शाह को पद से हटाकर निर्वासन में भेजा गया।
- तालुकेदारों ने अपनी ज़मींदारी खो दी।
- अवध के सैनिकों में असंतोष फैल गया, जिनमें से कई ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया।
IV. प्रशासनिक केंद्रीकरण और राजस्व नियंत्रण
विस्तारित क्षेत्रों के साथ, ब्रिटिशों ने केंद्रीकृत प्रशासनिक और राजस्व प्रणालियों को स्थापित करने का प्रयास किया।
केंद्रीकृत नौकरशाही:
- ब्रिटिश सिविल सेवा ने पारंपरिक प्रशासनिक तंत्र को प्रतिस्थापित किया।
- स्थानीय परंपराओं को दरकिनार कर कोडिफाइड कानून लाए गए।
राजस्व प्रणालियाँ:
- स्थायी बंदोबस्त (बंगाल): ज़मींदारों को राजस्व मध्यस्थ बनाया गया।
- रैयतवारी प्रणाली (मद्रास, बॉम्बे): सीधे किसानों से वसूली।
- महलवारी प्रणाली (उत्तर भारत): गाँवों पर आधारित कर निर्धारण।
प्रभाव:
- ब्रिटिशों को राजस्व पर पूर्ण नियंत्रण मिला।
- पारंपरिक राजस्व प्राधिकार कमजोर हुए।
V. भारतीय शासकों की राजनीतिक प्रतिक्रिया
भारतीय शासकों की प्रतिक्रियाएँ विभिन्न प्रकार की थीं – कुछ ने सहयोग किया, कुछ ने प्रतिरोध।
सहयोग:
- हैदराबाद और ग्वालियर जैसे राज्यों ने प्रतीकात्मक शक्ति बनाए रखने हेतु सहयोग किया।
निष्क्रिय प्रतिरोध:
- ब्रिटिश रेज़िडेंट को देर से मान्यता देना या शर्तों पर पुनः वार्ता का प्रयास।
सशस्त्र विद्रोह:
- झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिशों के विरुद्ध विद्रोह किया।
- अवध: बेगम हज़रत महल ने 1857 में नेतृत्व किया।
- तात्या टोपे, एक मराठा सेनापति, ने ब्रिटिश विस्तार के विरुद्ध संघर्ष किया।
निष्कर्ष
सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत केवल प्रशासनिक उपकरण नहीं थे – ये ब्रिटिश साम्राज्यवादी नियंत्रण को मजबूत करने के सुनियोजित प्रयास थे। सुधार के नाम पर अवध का विलय ब्रिटिश राजनीतिक अवसरवाद का स्पष्ट उदाहरण था। इन घटनाओं ने बढ़ते असंतोष की भूमि तैयार की, जिसका चरम 1857 के विद्रोह के रूप में सामने आया।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह विषय ब्रिटिश रणनीतियों, औपनिवेशिक विस्तार और प्रारंभिक भारतीय प्रतिरोध को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। |
MCQ
1. सबसे पहले सहायक संधि स्वीकार करने वाला भारतीय राज्य कौन था?
A. मैसूर
B. अवध
C. हैदराबाद
D. बसेन
उत्तर: C. हैदराबाद
व्याख्या: हैदराबाद के निज़ाम ने 1798 में पहली बार वेल्सली की सहायक संधि स्वीकार की, जिससे ब्रिटिश सेना उनके क्षेत्र में स्थायी रूप से तैनात हुई।
2. बसेन की संधि (1802) किसके साथ हुई थी?
A. इंदौर के होल्कर
B. झाँसी की रानी
C. पेशवा बाजीराव द्वितीय
D. ग्वालियर के सिंधिया
उत्तर: C. पेशवा बाजीराव द्वितीय
व्याख्या: बसेन की संधि के अंतर्गत पेशवा बाजीराव II ने ब्रिटिशों के संरक्षण को स्वीकार किया, जिससे मराठा राजनीति में ब्रिटिश हस्तक्षेप बढ़ा।
3. सहायक संधि के अंतर्गत शासक को क्या करना पड़ता था?
- ब्रिटिश सेना को अपने राज्य में अनुमति देना
- अपनी सेना को भंग करना
- ब्रिटिश सेना के रखरखाव का खर्च उठाना
- स्वतंत्र रूप से विदेश नीति चलाना
सही कूट चुनें:
A. 1, 2, और 3 केवल
व्याख्या: सहायक संधि के तहत शासक को ब्रिटिश सेना को अनुमति देनी होती थी, अपनी सेना भंग करनी होती थी, और ब्रिटिश सेना के खर्च का भुगतान करना होता था। पर विदेशी नीतियों पर स्वतंत्रता नहीं थी, वह ब्रिटिश अनुमोदन पर निर्भर थी।
4. निम्न में से कौन सा राज्य व्यपगत सिद्धांत के अंतर्गत विलय किया गया था?
A. अवध
B. हैदराबाद
C. झाँसी
D. मैसूर
उत्तर: C. झाँसी
व्याख्या: रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को ब्रिटिशों ने उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया, इसलिए झांसी को 1853 में व्यपगत सिद्धांत के तहत हड़प लिया गया।
5. व्यपगत सिद्धांत किसके शासनकाल में शुरू किया गया?
A. लॉर्ड वेल्सली
B. लॉर्ड हेस्टिंग्स
C. लॉर्ड कॉर्नवालिस
D. लॉर्ड डलहौज़ी
व्याख्या: लॉर्ड डलहौज़ी ने 1848 से 1856 तक अपने कार्यकाल में व्यपगत सिद्धांत लागू किया, जिससे कई रियासतों का विलय हुआ।
6. कथन (A): व्यपगत सिद्धांत ने दत्तक पुत्रों के उत्तराधिकार के अधिकार को मान्यता दी।
कारण (R): ब्रिटिश बिना हस्तक्षेप के उन्हें उत्तराधिकारी मानते थे।
उत्तर: D. A गलत है, लेकिन R सही है
व्याख्या: व्यपगत सिद्धांत के तहत दत्तक पुत्रों को मान्यता तभी दी जाती थी जब ब्रिटिश सरकार स्वीकृति देती थी; परंपरागत भारतीय रीति-रिवाजों का ब्रिटिशों ने पालन नहीं किया।
7. निम्न में से कौन-कौन से राज्य व्यपगत सिद्धांत से हड़पे गए थे?
- सतारा
- नागपुर
- जैतपुर
- हैदराबाद
उत्तर: A. 1, 2, और 3 केवल
व्याख्या: हैदराबाद व्यपगत सिद्धांत के अंतर्गत नहीं आया, जबकि सतारा, नागपुर और जैतपुर को इस सिद्धांत के तहत हड़प लिया गया।
8. 1856 में अवध के विलय का आधिकारिक कारण क्या था?
A. पुरुष उत्तराधिकारी की कमी
B. धार्मिक असहिष्णुता
C. कुप्रशासन और अराजकता
D. सहायक संधि पर हस्ताक्षर से इनकार
व्याख्या: ब्रिटिशों ने अवध में कुप्रशासन और अराजकता का हवाला दिया, लेकिन असली कारण उसकी सामरिक और आर्थिक महत्ता थी।
9. स्थायी बंदोबस्त प्रणाली में राजस्व वसूली की जिम्मेदारी किसे दी गई थी?
A. रैयत
B. ज़मींदार
C. ग्राम पंचायत
D. ब्रिटिश रेज़िडेंट
व्याख्या: स्थायी बंदोबस्त में ज़मींदारों को hereditary revenue collector बनाया गया था, जिनसे ब्रिटिश सरकार ने स्थायी राजस्व वसूली सुनिश्चित की।
10. निम्नलिखित का मिलान करें (व्यपगत सिद्धांत द्वारा विलय का वर्ष):
सतारा – A. 1853
झाँसी – B. 1848
नागपुर – C. 1854
उत्तर: A. सतारा – B, झाँसी – A, नागपुर – C
व्याख्या:
- सतारा 1848 में विलय हुआ।
- झांसी 1853 में विलय हुआ।
- नागपुर 1854 में विलय हुआ।
11. 1857 के विद्रोह में अवध का नेतृत्व किसने किया?
A. रानी लक्ष्मीबाई
B. कुँवर सिंह
C. बेगम हज़रत महल
D. नाना साहिब
व्याख्या: बेगम हज़रत महल ने अवध में ब्रिटिशों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया।
12. किस राजस्व प्रणाली में किसानों से प्रत्यक्ष वसूली की जाती थी?
A. महलवारी
B. ज़मींदारी
C. रैयतवारी
D. इक्तदारी
व्याख्या: रैयतवारी प्रणाली में सरकार सीधे किसानों (रैयतों) से कर वसूलती थी, जैसे मद्रास और बॉम्बे प्रांतों में।
13. कथन (A): सहायक संधि ने भारतीय सैन्य स्वायत्तता को बढ़ावा दिया।
कारण (R): भारतीय शासकों को ब्रिटिश सेना का खर्च उठाना पड़ता था।
उत्तर: C. A गलत है, लेकिन R सही है
व्याख्या: सहायक संधि ने भारतीय सैन्य स्वायत्तता कम की क्योंकि शासकों को अपनी सेना भंग करनी पड़ती थी, जबकि ब्रिटिश सेना का खर्च उठाना पड़ता था।
14. निम्नलिखित में से कौन 1857 में ब्रिटिश विस्तार के विरुद्ध मराठा सेनापति थे?
A. तात्या टोपे
B. नाना साहिब
C. रानी लक्ष्मीबाई
D. बेगम हज़रत महल
व्याख्या: तात्या टोपे मराठा सेनापति थे जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिशों का प्रभावी विरोध किया।
15. महलवारी प्रणाली कहाँ लागू की गई थी?
A. बंगाल
B. मद्रास
C. बॉम्बे
D. उत्तर-पश्चिमी प्रांत
व्याख्या: महलवारी प्रणाली मुख्यतः उत्तर भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में लागू की गई, जहाँ पूरे गाँव के आधार पर राजस्व निर्धारित किया जाता था।