जनजातीय विद्रोह: संथाल, मुंडा, कोल, भील विद्रोह

(संथाल विद्रोह (1855): सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में, कोल विद्रोह (1831–32): भूमि अतिक्रमण के विरुद्ध, मुंडा उलगुलान (1899): बिरसा मुंडा का आंदोलन, मध्य भारत में भील विद्रोह, औपनिवेशिक वन और भूमि नीतियों पर प्रभाव)

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के लिए संथाल, मुंडा, कोल और भील जैसे जनजातीय विद्रोहों का विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये घटनाएँ आदिवासी समुदायों द्वारा औपनिवेशिक शोषण और भूमि अतिक्रमण के प्रतिरोध को समझने में सहायक हैं। प्रारंभिक परीक्षा में तिथियों, नेताओं और कारणों पर सीधे प्रश्न आते हैं, जबकि मुख्य परीक्षा में आधुनिक भारतीय इतिहास और सामाजिक न्याय से संबंधित उत्तरों में इनका गहन उपयोग होता है। ये विद्रोह पर्यावरणीय शासन और जनजातीय नीतियों (GS पेपर II और III) से भी जुड़े हैं। बिरसा मुंडा जैसे नेताओं की नैतिक नेतृत्व शैली GS पेपर IV से मेल खाती है। इसके अतिरिक्त, निबंध और वैकल्पिक विषयों (इतिहास और मानवशास्त्र) में भी ये विषय उपयोगी हैं।

परिचय

औपनिवेशिक भारत में अनेक जनजातीय विद्रोह हुए, जो शोषण और हाशिये पर डाले गए आदिवासी समुदायों की पीड़ा को दर्शाते हैं। ये विद्रोह मुख्यधारा के इतिहास में अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, किंतु ये प्रतिरोध आंदोलनों और औपनिवेशिक नीतियों के प्रभाव को समझने में अत्यंत आवश्यक हैं।

1. संथाल विद्रोह (1855–56)

नेता: सिद्धू और कान्हू मुर्मू
स्थान: वर्तमान झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्से

यह विद्रोह ब्रिटिश शासन और ज़मींदारी व्यवस्था के विरुद्ध एक निर्णायक मोड़ था। संथाल, जो राजमहल की पहाड़ियों में खेती के लिए आए थे, महाजनों, राजस्व अधिकारियों और ज़मींदारों द्वारा आर्थिक शोषण के शिकार बने।

कारण:

  • अन्यायपूर्ण राजस्व व्यवस्था और अत्यधिक कर
  • महाजनों की शोषणकारी ऋण प्रणाली
  • भूमि से बेदखली और जबरन श्रम (बेगार)

घटनाक्रम और दमन:
जून 1855 में, सिद्धू और कान्हू ने लगभग 10,000 संथालों को संगठित कर सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। हालांकि विद्रोह उग्र था, लेकिन ब्रिटिश सेना ने इसे बलपूर्वक दबा दिया।

प्रभाव:

  • संथाल परगना का गठन विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में हुआ
  • औपनिवेशिक भूमि राजस्व प्रणाली की विफलता उजागर हुई

2. कोल विद्रोह (1831–32)

स्थान: छोटानागपुर का पठारी क्षेत्र (अब झारखंड)

कोल जनजातियाँ — हो, मुंडा, उरांव और भूमिज — गैर-जनजातीय ज़मींदारों और महाजनों के अतिक्रमण के विरुद्ध उठ खड़ी हुईं।

कारण:

  • नई भूमि नीतियों के कारण बाहरी लोगों का आगमन
  • पारंपरिक जनजातीय प्रशासन और न्याय प्रणाली का विघटन
  • अत्यधिक भू-भाड़ा और ऋणग्रस्तता

घटनाक्रम और परिणाम:
1831 में आरंभ हुआ यह विद्रोह सरकारी कार्यालयों, महाजनों और ज़मींदारों पर समन्वित हमलों के रूप में प्रकट हुआ। ब्रिटिशों ने इसे सैन्य बल से दबा दिया।

प्रभाव:

  • औपनिवेशिक प्रशासन को भूमि नीतियों की पुनः समीक्षा के लिए मजबूर किया
  • जनजातीय क्षेत्रों में विशेष प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई

3. मुंडा उलगुलान (1899–1900): बिरसा मुंडा की आत्मनिर्भरता की दृष्टि

नेता: बिरसा मुंडा
स्थान: रांची और सिंहभूम ज़िले (अब झारखंड)

“उलगुलान” (महाविप्लव) नामक यह आंदोलन बिरसा मुंडा द्वारा प्रारंभ किया गया था, जिन्होंने पारंपरिक विश्वासों और एक नई सामाजिक-राजनीतिक चेतना को एकत्रित किया।

कारण:

  • ज़मींदारी व्यवस्था से मुंडाओं की बेदखली
  • पारंपरिक भूमि अधिकार (खुंटकट्टी) का नकार
  • महाजनों, ईसाई मिशनरियों और ज़मींदारों द्वारा शोषण

घटनाक्रम और प्रभाव:
बिरसा ने सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जागृति के लिए जनजातीयों को संगठित किया। यह आंदोलन एक सशस्त्र विद्रोह में बदल गया लेकिन 1900 में दबा दिया गया।

विरासत:

  • बिरसा मुंडा जनजातीय पहचान और प्रतिरोध के प्रतीक बने
  • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) पारित हुआ, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा की

4. भील विद्रोह

क्षेत्र: खांडेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र

भील, जो अपनी युद्धक परंपरा के लिए प्रसिद्ध थे, ने 1818–1831 के दौरान ब्रिटिश दखल के विरुद्ध विद्रोह किया।

कारण:

  • वनों के अधिकारों और पारंपरिक जीविका पर अतिक्रमण
  • नए राजस्व तंत्र का आरोपण
  • स्थानीय सरदारों और परंपरागत प्रथा का दमन

प्रतिक्रिया और परिणाम:
ब्रिटिशों ने सैन्य और तुष्टीकरण की रणनीति अपनाई — जनजातीय मामलों के लिए ब्रिटिश अधिकारियों की नियुक्ति की गई। हालांकि विद्रोह समय-समय पर जारी रहे।

महत्व:

  • जनजातीय समुदायों की जुझारूपन की भावना का प्रमाण
  • भविष्य की वन संरक्षण नीतियों की नींव रखी

5. औपनिवेशिक नीति में परिवर्तन: वन और भूमि

वन नीति में बदलाव:

  • भारतीय वन अधिनियम (1865, संशोधित 1878 और 1927)
  • आरक्षित वन क्षेत्रों में जनजातीयों की पहुंच सीमित की गई
  • वन क्षेत्रों की पुलिसिंग बढ़ाई गई

भूमि राजस्व समायोजन:

  • संथाल परगना जैसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बनाए गए
  • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम जैसे कानून पारित हुए
  • कुछ क्षेत्रों में परंपरागत भूमि अधिकारों की मान्यता

निष्कर्ष:

औपनिवेशिक भारत में हुए जनजातीय विद्रोह महज़ स्थानीय घटनाएं नहीं थे, बल्कि अधिकारों, पहचान और आत्मनिर्भरता के लिए व्यापक संघर्ष का हिस्सा थे। ये आंदोलन आदिवासी समुदायों की शक्ति और औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध उनके साहसिक प्रयासों को दर्शाते हैं।

UPSC अभ्यर्थियों के लिए ये विद्रोह न केवल इतिहास में बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय और नैतिक दृष्टिकोणों से भी अत्यंत समृद्ध सामग्री प्रदान करते हैं।

MCQ

  1. 1855 का संथाल विद्रोह किसके नेतृत्व में हुआ था?
    a) बिरसा मुंडा
    b) तिलका मांझी
    c) सिद्धू और कान्हू मुर्मू
    d) जात्रा उरांव
    उत्तर: c) सिद्धू और कान्हू मुर्मू
    व्याख्या: इन्होंने औपनिवेशिक शोषण और ज़मींदारी व्यवस्था के खिलाफ संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया।
  2. 1831–32 का कोल विद्रोह मुख्य रूप से किस क्षेत्र में हुआ था?
    a) संथाल परगना
    b) खांडेश
    c) छोटानागपुर पठार
    d) तेलंगाना
    उत्तर: c) छोटानागपुर पठार
    व्याख्या: यह विद्रोह झारखंड के आदिवासी बहुल छोटानागपुर क्षेत्र में हुआ।
  3. संथाल विद्रोह का मुख्य कारण क्या था?
    a) धार्मिक रूपांतरण
    b) जंगल भूमि पर अतिक्रमण
    c) महाजनों और ज़मींदारों द्वारा शोषण
    d) ब्रिटिश भर्ती नीतियाँ
    उत्तर: c) महाजनों और ज़मींदारों द्वारा शोषण
    व्याख्या: आर्थिक शोषण इस विद्रोह का मुख्य कारण था।
  4. मुंडा उलगुलान आंदोलन के उत्तर में कौन-सा अधिनियम पारित किया गया था?
    a) भारतीय वन अधिनियम, 1927
    b) रैयतवारी अधिनियम
    c) छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908
    d) भूमि निष्कासन अधिनियम, 1900
    उत्तर: c) छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908
    व्याख्या: इस अधिनियम ने पारंपरिक आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा की।
  5. बिरसा मुंडा ने उलगुलान आंदोलन किस क्षेत्र में चलाया था?
    a) बस्तर
    b) रांची और सिंहभूम
    c) संथाल परगना
    d) सतपुड़ा पहाड़ियाँ
    उत्तर: b) रांची और सिंहभूम
    व्याख्या: यह आंदोलन झारखंड के इन क्षेत्रों में केंद्रित था।
  6. निम्नलिखित में से कौन-सा कोल विद्रोह का कारण नहीं था?
    a) पारंपरिक सत्ता का ह्रास
    b) आदिवासी भूमि स्वामित्व में विघटन
    c) स्थायी बंदोबस्त की शुरुआत
    d) ब्रिटिश सैन्य भर्ती में वृद्धि
    उत्तर: d) ब्रिटिश सैन्य भर्ती में वृद्धि
    व्याख्या: यह विद्रोह मुख्यतः भूमि निष्कासन और स्वायत्तता के मुद्दे पर था।
  7. भील विद्रोह मुख्य रूप से किस क्षेत्र में केंद्रित थे?
    a) झारखंड और बिहार
    b) पश्चिमी मध्य प्रदेश और राजस्थान
    c) छत्तीसगढ़ और ओडिशा
    d) असम और अरुणाचल प्रदेश
    उत्तर: b) पश्चिमी मध्य प्रदेश और राजस्थान
    व्याख्या: यह क्षेत्र भील प्रतिरोध का मुख्य केंद्र था।
  8. निम्नलिखित विद्रोहों को उनके नेताओं से मिलाएँ:
    विद्रोह – नेता
    A. मुंडा उलगुलान – 1. सिद्धू-कान्हू
    B. संथाल विद्रोह – 2. बिरसा मुंडा
    C. कोल विद्रोह – 3. सामूहिक आदिवासी नेतृत्व

a) A-1, B-2, C-3
b) A-2, B-1, C-3
c) A-3, B-1, C-2
d) A-2, B-3, C-1
उत्तर: b) A-2, B-1, C-3
व्याख्या: मुंडा – बिरसा मुंडा; संथाल – सिद्धू-कान्हू; कोल – विभिन्न आदिवासी नेताओं द्वारा नेतृत्व।

  1. कथन (A): मुंडा उलगुलान केवल एक धार्मिक आंदोलन था।
    कारण (R): बिरसा मुंडा ने खुद को भगवान का दूत घोषित किया।
    a) A और R दोनों सत्य हैं और R, A की सही व्याख्या है
    b) A और R दोनों सत्य हैं, लेकिन R, A की सही व्याख्या नहीं है
    c) A असत्य है, लेकिन R सत्य है
    d) A सत्य है, लेकिन R असत्य है
    उत्तर: c) A असत्य है, लेकिन R सत्य है
    व्याख्या: यह आंदोलन धार्मिक और राजनीतिक दोनों था।
  2. आदिवासी विद्रोहों के बाद कौन-सी नीतियों में बदलाव हुआ?
  • भूमि राजस्व में समायोजन
  • विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों की स्थापना
  • ज़मींदारी अधिकारों का विस्तार
  • आरक्षित वनों की शुरुआत

a) केवल 1 और 2
b) 1, 2 और 4
c) केवल 2 और 3
d) उपरोक्त सभी
उत्तर: b) 1, 2 और 4
व्याख्या: ये उपाय आदिवासी असंतोष और संसाधनों के प्रबंधन हेतु किए गए।

  1. संथाल विद्रोह के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन/कथन सही है/हैं?
  2. इसने संथाल परगना नामक एक अलग प्रशासनिक इकाई की स्थापना की।
  3. यह मुख्यतः ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के खिलाफ था।
    a) केवल 1
    b) केवल 2
    c) दोनों 1 और 2
    d) न तो 1 और न ही 2
    उत्तर: a) केवल 1
    व्याख्या: यह विद्रोह स्थानीय शोषकों के खिलाफ था, न कि कंपनी की सेना के।
  4. ‘उलगुलान’ शब्द का तात्पर्य है:
    a) आदिवासी नेताओं के बीच सैन्य गठबंधन
    b) आदिवासी सरदारों के बीच शांति संधि
    c) बिरसा मुंडा द्वारा नेतृत्व किया गया महान आंदोलन
    d) ब्रिटिशों द्वारा लगाया गया वन कर
    उत्तर: c) बिरसा मुंडा द्वारा नेतृत्व किया गया महान आंदोलन
    व्याख्या: मुंडारी भाषा में उलगुलान का अर्थ है विद्रोह या आंदोलन।
  5. कथन (A): भील विद्रोह अल्पकालिक थे और शीघ्र ही दबा दिए गए।
    कारण (R): भीलों में कोई सैनिक परंपरा या राजनीतिक नेतृत्व नहीं था।
    a) A और R दोनों सत्य हैं और R, A की सही व्याख्या है
    b) A सत्य है, लेकिन R असत्य है
    c) A असत्य है, लेकिन R सत्य है
    d) A और R दोनों असत्य हैं
    उत्तर: b) A सत्य है, लेकिन R असत्य है
    व्याख्या: भीलों की मजबूत सैनिक परंपरा थी, हालांकि नेतृत्व स्थानीय था।
  6. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिनियम आदिवासियों की वन तक पहुँच को सीमित करता था?
    a) रॉलेट अधिनियम
    b) भारतीय वन अधिनियम
    c) स्थानीय भाषा प्रेस अधिनियम
    d) आपराधिक जनजाति अधिनियम
    उत्तर: b) भारतीय वन अधिनियम
    व्याख्या: इस अधिनियम ने वनों को राज्य संपत्ति घोषित किया और आदिवासी उपयोग को सीमित किया।
  7. छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) क्यों महत्वपूर्ण था?
    a) इसने पूरे भारत में ज़मींदारी व्यवस्था समाप्त कर दी
    b) इसने छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासियों को भूमि अधिकार दिए
    c) इसने मिशनरियों को आदिवासी भूमि प्राप्त करने की अनुमति दी
    d) इसने बंधुआ मज़दूरी को वैध कर दिया
    उत्तर: b) इसने छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासियों को भूमि अधिकार दिए
    व्याख्या: इस अधिनियम ने आदिवासी भूमि को बाहरी लोगों से बचाया।

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